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________________ 1740-45 ई. के लगभग अन्ततः नागपुर जा पहुँचे। वहाँ छोटा-मोटा धन्धा शुरू किया। भाग्य ने पुरुषार्थ का साथ दिया, अच्छी स्थिति बना ली और कटक के राजा मुकुन्ददेव के दरबार में भी पैठ होने लगी। जब 1750 ई. के लगभम मराठा सरदार रघुजी भोंसले ने नागपुर पर अधिकार कर लिया और 1751 ई. में बंगाल के नवाब पर चढ़ाई करके पूरा उडासा प्रान्त उसले छान लिया हममसिल के मापा धन मये और शीघ्र ही उनके रसद विभाग के अध्यक्ष भी। अपनी कार्यकुशलता से भोंसले के बह इतने विश्वासपात्र अन गये कि उसने इन्हें कटक के राजा के दरबार में अपना सौधरी नियुक्त कर दिया। अब मंजु चौधरी ने स्वदेश जाकर अपना विवाद किया-पत्नी का नाम नगीनाबाई था 1 बंगाल के नवाब अलीवला को उड़ीसा प्रान्त का हाथ से निकल जाना बहुत अखर रहा था और मौसला राजा इस समय अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समाचारों से अन्यत्र व्यस्त था। अतएव नवाब ने उड़ीसा पर चढ़ाई कर दी। कटक के राजा ने दरबार में बीड़ा रखा कि नवाब के आक्रमण का कौन निधारण करेगा। कोई भी राजपूत या मराठा सरदार तैयार नहीं हुआ। तब पीर मंजु चौधरी ने बीड़ा उठा लिया और सेना संगठित करके नवाब के प्रतिरोध के लिए चल पड़े। इस सदलबल दृढ़ विरोध को देख नवाब हताश हो वापस लौर गया। इस घटना से रघुजी भोंसला और राजा मुकुन्ददेव दोनों ही चौधरी से अत्यन्त प्रसन्न हुए और परिणामस्वरूप मंजु चौधरी राज्य के दीवान और यास्तविक कार्य संचालक बन गये । राज्य की आय पचास लाख थी, जिसमें से बीस लाख वह भागपुर के भोंसला दरबार को भेजते और शेष में अपने कटक राज्य का कार्य कुशलता के साथ चत्वाते थे। राज्य की ओर से इन्हें जागीर भी मिली थी और नगर में उन्होंने एक नया बड़ा बाजार बसाया जो आज पर्यन्त चौधरी बाजार कहलाता है। इन्होंने 1768 ई. के स्वामम निकटवर्ती प्राचीन जैन तीर्थ खण्डगिरि पर एक विशाल जिनमन्दिर बनवाया था और स्वदेश से अपने तीन भानजों-भवानी, तुलसी और मोती...को भी अपने पास बुला लिया। भवानी दास तो इनके राज्यकार्य में भी इन्हें अच्छा सहयोग देने लगा। आमेर के भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति की प्रसिद्धि सुनकर चौधरी ने 1780 ई. में उन्हें कटक में आमन्त्रित किया और यहाँ उन्होंने उसकी विदुषी एवं सुलक्षणा धर्मपत्नी की प्रेरणा से ज्येष्ठ जियवर-पूजा-व्रतकथा' की रचना की । सम्भवतया सेठानी ने उनके उपदेश से वह व्रत पुरा करके उसका उद्यापन भी किया था। दो वर्ष बाद जब चौधरी जन्मभूमि कुम्हेही गर्य तो यहाँ भी उन्होंने 1782 ई. में अचलसिंह प्रधान से 'पुण्यासव कथाकोश' की प्रति लिखायी थी। अपने धर्मकार्यों के कारण मंजु चौधरी ने 'गुण्याधिकारी उपाधि प्राप्त की थी। अपने अभ्युदय में वह न अपनी जन्मभूमि को भूले, न माते-रिश्तेदारों को और न निज धर्म को ही। कटक के एन प्रसिद्ध 'पण्याधिकारी' मज चौधरी का निधन 1785 ई. के लगभग हुआ लगता है। आधुनिक युग : अगरेजों द्वारा शासित प्रदेश :: 571
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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