SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ था। नये राणा से भी उसकी नहीं पटी । इसी प्रकार चलता रहा और कुछ ही समय पश्चात् उसकी मृत्यु हो गयी । मेहता गोकुलचन्द - मेहता देवीचन्द का पौत्र और सरूपचन्द का पुत्र था। प्रारम्भ में राणा रूपसिंह ने उसके चचा शेरसिंह को हटाकर इसे प्रधान बनाया था और 1859 ई. तक वह उस पद पर रहा। जब राणा शम्भूसिंह के समय में 1863 माण पत्र जो कुल जय था । माण्डलगढ़ की किलेदारी तो इस वंश की कुल क्रमागत थी, जब-जब और कोई पद या कार्य न होता तो इस वंश के लोग माण्डलगढ़ ही चले जाते थे। ऐसा ही 1866 ई. में गोकुलचन्द मे किया, किन्तु 1869 ई. में राणा ने उसे बुलाकर अपना प्रधान नियुक्त किया और उस पद पर 1874-75 ई. तक रहा। तदनन्तर माण्डलगढ़ चला गया और वहीं उसकी मृत्यु हुई। मेहता पन्नालाल - अगरचन्द बच्छावत के छोटे भाई हंसराज के ज्येष्ठ पुत्र atrare का प्रपौत्र था। खास कचहरी के नायब से उन्नति करके यह 1869 ई. में राणा शम्भूसिंह के समय महकमे खास का सचिव बना, जिसके अधिकार और कर्तव्य प्रायः वही थे जो पूर्वकाल में प्रधान के होते थे। प्रधान का पद अब समाप्त कर दिया गया था । किन्तु उसने अनेक शत्रु पैदा कर लिये थे, जिनकी शिकायतों पर विश्वास करके राणा ने 1874 ई. में उसे कुछ समय के लिए कर्णविलास महल में कैद भी कर दिया था। राणा की दाहक्रिया के समय मेहता की हत्या का भी प्रयत्न हुआ। अतएव वह उदयपुर को छोड़कर अजमेर चला गया। नये राणा सज्जनसिंह ने 1875 ई. में उसे अजमेर से बुलाकर फिर से महकमाख़ास का कार्य सौंप दिया। लार्ड लिटन के 1877 ई. के दिल्ली दरबार में मेहता पन्नालाल को 'राय' का खिताब मिला और 1880 ई. में वह महद्राजसभा का सदस्य बना। सज्जनसिंह के राज्यकाल के अन्त तक वह राज्य का प्रधान (महकमेख़ास का सेक्रेटरी) बना रहा और उसके उत्तराधिकारी राणा फतहसिंह को गद्दी पर बैठाने में उसका पूरा हाथ था । इस राप्णा के राज्यारम्भ में ही 1887 ई. में मलका विक्टोरिया की जुबिली के अवसर पर मेडता पन्नालाल को सी. आई.ई. उपाधि प्रदान की गयी। तीर्थयात्रा के विचार से 1894 ई. में उसने राज्यसेवा से अवकाश लिया और कुछ वर्ष पश्चात् उसकी मृत्यु हो गयी । उसकी कार्यकुशलता एवं व्यवहार से राजा प्रजा, सामन्त-सरदार और अँगरेज़ अधिकारी सभी प्रायः सन्तुष्ट रहे । पन्नालाल का पुत्र फतेलाल राणा फतहसिंह का कुछ काल तक विश्वासपात्र रहा, और फतेलाल का पुत्र देवीलाल महकमा देवस्थान का अध्यक्ष भी रहा। इस प्रकार उदयपुर के बच्छावत वंश के अनेक पुरुषों ने मेवाड़ राज्य की प्रशंसनीय सेवा की। उनमें से जो अत्युच्च पद पर पहुँचे और विशेष उल्लेखनीय थे, उन्हीं का परिचय दिया गया है। सोमचन्द गाँधी- 1768 ई. में राणा भीमसिंह गद्दी पर बैठा और तदनन्तर आधुनिक युग देशी राज्ध : 353
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy