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________________ इस युग में जयपुर राज्य में अन्य अनेक व्यक्तियों में भी विविध धर्म-कार्य किये थे, यथा-मालपुरा में 4598 ई. में भट्टारक भुवनकीर्ति की आम्नाय के गर्गगोत्री अग्रवाल सेठ सामा ने अपनी पुत्री नगीना के व्रत उधापनार्थ षोडशकारण यन्त्र प्रतिष्ठापित किया था, 1601 ई. में चन्द्रकीर्ति की आम्नाय के सहगोत्री खण्डेलवाल सेठ गंगराज ने पार्श्व-प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी, 1669 ई. में गुणभद्र की आम्नाथ के जैसवाल जातीय चरुगवंशी प्रधान नरायण के पुत्र संघही दलपत ने सम्यग्ज्ञान यन्त्र प्रतिष्ठापित किया था और 1694 ई. में रलकीर्ति की आम्नाय के ठोस्थागोत्री खण्डेलवाल साह दामोदर के पुत्र साह जेसा मे पं, वीरदास के उपदेश से धातु की आदिनाथ-प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी। इसी प्रकार जोबनेर के राजा विजयसिंह के राज्य में और 1722 ई. में... रायकुरुसिंह के राज्य में, बिलाला गोत्री खण्डलवाल साह नंग के पुत्र सिंघई मलजीत ने पं. दयाराम के उपदेश से धातु की चौवीसी प्रतिष्ठित करायी थी। 1570 ई. में सागवाड़ा निवासी कसलेश्वर गोत्री हुमड़ साह माणिक ने सपरिवार स्वगुरु भट्टारक सुमतिकीर्ति के उपदेश से धातु की चौबीसी प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी, इत्यादि। :24 दक्षिण भारत के राज्य विजयनगर के उत्तरवर्ती राजे-1563 ई. मैं तालिकोटा के युद्ध में समराजा की पराजय और मृत्यु तथा विजयनगर का विध्वंस हो जाने के पश्चात उसके वंशज अपने सीमित प्रदेश (प्रेमगोंडा) पर चन्द्रगिरि से राज्य करने लगे थे। इनमें प्रथम राजा तिरुमल था। तदनन्तर रंगराय प्रथम (1573-85 ई.), वेंकट प्रथम (15861617 ई.), कट द्वितीय (1617-41 ई.), रंगराय द्वितीय (1642-84 ई.) इत्यादि राजा क्रमशः हुए। बल्लमराजदेव-महाआरसु-रंगराय प्रथम के महामण्डलेश्वर श्रीपतिराज का पौत्र और राजयदेव-महाअरतु का पत्र कुमार बल्लभराजदेव-महाअरतु 1578 ई. मगरनाड का शासक था । उसने हेयारे की बसदि (जिनमन्दिर) के 'मान्य' की पुनः स्थापना के लिए उस वर्ष एक दानशासन जारी किया था और उक्त बसदि के लिए कुछ भूमियाँ तथा अन्य दान दिये थे। यह दान उसने गोविन्द सेट्टि नामक जैन सेठ की प्रेरणा से दिये थे। बोम्मण श्रेष्ठि-पेनुगोंडा के महाराज बैंकट प्रथम के अधीनस्थ आरग के शासक वेंकटादि-नायक का आश्रित बोम्मश-हेगड़े मुत्तूर का शासक था। उसके इलाके के मेलिगे नगर निवासी वणिकमुख्य वर्धमान और उसकी पत्नी नेमाम्या का पुत्र होम्पणश्रेष्टि था, जिसने 1608 ई. में वहीं एक भव्य जिनालय छनवाकर उसमें अनन्त जिन की प्रतिष्ठापना की थी और मन्दिर के लिए दान दिये थे। यह सेठ 342 : प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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