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भगतराम पाहता भी सब कृपाराम और फताह के सहोदर थे. 1. वह 1.7355 ई. से 1743 ई. सक राज्य के दीवान रहे और अपने भाइयों की भाति राज्य की सेवा की।
विजयराम छाबड़ा-तोलूराम के पुत्र थे, इसलिए विजयराम तोलका भी कहलाते थे। इनके वंशजों का भी तोलूका' बौंक पड़ गया। यह भी सवाई जयसिंह के एक दीवान थे। महाराज को एक बहन की दिल्ली के बादशाह ने माँग की, किन्तु विजयराम की चतुराई से वह खुदी के हाड़ा राजा बुधसिंह के साथ चुपके से विवाह दी गयी। जयसिंह उस समय दिल्ली में थे। बादशाह उनसे तथा बुधसिंह दोनों से रुष्ट हो गया, किन्तु रणयाँकुरा हाडाचीर डरा नहीं। विजयराम तो साहसी और दीर थे ही। बादशाह की एक न चली। महाराज ने विजयराम की स्थामिभक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें एक ताम्रपत्र दिया जिसमें लिखा था, "तुम्हें शाबाशी है, तुमने कहवाहों के धर्म की रक्षा की है, वह राज्यवंश तुमसे कभी उऋण नहीं हो सकता और जो पाएगा तुम्हारे साथ बौटकर खाएगा।'
किशोरदास महाजन. दौसा निवासी छाबड़ा गोत्रो खण्डेलवाल जैन थे। याह 1692 ई. से 1722 ई. तक जयपुर राज्य के दीयान थे।
___ ताराचन्द्र बिलाला-केशवदास बिलाला के पुत्र थे और सवाई जयसिंह के समय में 1716 ई. से 1798 ई. तक के दीवान रहे थे। जयपुर नगर का लूणकरण पाण्डवावाला मन्दिर इन्हीं का बनवाया हुआ है। इनकी अपनी विशाल हवेली पचेवरवालों के रास्ते में थी। इन्होंने चतुर्दशीव्रत करके उसके समापनार्थ भट्टारक विद्यानन्दि के शिष्य पण्डित अक्षयराम से 1748 ई. में 'चतुर्दशी व्रतोद्यापन' नामक संस्कृत पुस्तक लिखवायी थी।
नैनसुख छाबड़ा-दौसा निवासी छाबड़ागोत्री खण्डेलवाल थे और तेरहपंथ आम्नाय के अनुयायी एवं बड़ी धार्षिक प्रवृत्ति के सज्जन थे। दीखा, लालसोट, यसबा, चाकसू, टोंक, मालपुरा फागो, आमेर आदि कई स्थानों में इन्होंने जिनमन्दिर बनवाये थे। यह 1712-1719 ई. में राज्य के दीवान थे।
श्रीचन्द छाबड़ा-नैनसुख छाबड़ा के भाई थे और 1713-14 ई. में राज्य के दीवान थे।
कनीराम वैद-कठमाना ग्राम निवासी खेमकरण बँद के पुत्र थे और 1750 ई. से 1763 ई. तक जयपुर राज्य के दीवान रहे। जयपुर में मनीरामजी की कोठी के सामने स्थित मन्दिर तथा कठमाना का विशाल जिनमन्दिर इन्हीं के बनवाये हुए हैं। इनके भाई कीरतसम में कठमाना के निकट सोडा माप में एक जिन्नमन्दिर बनवाया था।
केसरीसिंह कासलीवाल- यह 1732 ई. में राज्य में एक सामान्य पद पर स्थित हुए और शनैः-शनैः उन्नति करके 1756 ई. से 176) ई. तक दीवान के पद
५.मा :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिला