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इन्हीं के पूर्वज चौधरो चादमल रहे बताये जाते हैं। सव जगराम बड़े धनी-मानी व्यक्ति थे। मुगल दरबार में भी इनकी पर्याप्त पहुँच थी।
राव कृपाराम पाण्ड्या -रावजगराम पाण्ड्या के सुयोग्य पुत्र थे और अत्यन्त प्रभावशाली, शान्ति एवं वैभवसम्पन्न राजपुरुष थे। महाराज सवाई जयसिंह की सभा के नवरत्नों में से यह एक थे। महाराज इनका बहुत सम्मान करते थे। इनका दीवान-काल 1723 ई. से 1799 ई. तक रहा, किन्तु उसके उपरान्त भी कई वर्षों तक वह राज्य की सेवा में रहते रहे। अपने महाराज के प्रतिनिधि के रूप में यह बहुधा दिल्ली दरबार में रहते थे और यहाँ बादशाह मुहम्मदशाह रँगीले के शतरंज के साथी थे। अनेक राजे-महाराजे इनके सामने खड़े रहते थे और अपने कार्यों के लिए रावजी से ही बादशाह के हतर में सिफारिशें करने की प्रार्थना किया करते थे। विभिन्न उमराव यह ध्यान रखते थे कि कहीं सबजी उनसे रुष्ट न हो जाएं। कर्नल टाड के अनुसार इन्हें बादशाह से छह-हजारी मनसब प्राप्त हुआ था और यह शाही कोषाध्यक्ष का पद भी संभालते थे। महाराज द्वारा जयपुर महानगरी के निर्माण में रावजी ने स्वयं करोड़ों रुपये की सहायता दी थी। जब रावजी की कन्या का विवाह माधोपुर के नगर सेठों के यहाँ हुआ तो स्वयं महासत ने कन्यादान दिया था । हथलेवा हुड़ाने में दो रुपये देने की प्रथा राबजी ने ही निर्धारित की थी जो जयपुर की जैन समाज में अब तक चली आती है। माही मरातिब भी ओ जयपुर नरेश की सवारी में लगते थे, रावजी को भी प्राप्त थे, किन्तु उन्होंने व महाराज को ही भेंट कर दिये थे। महाराज के भाई विजयसिंह ने जब महाराज के विरुद्ध राज्य हथियाने का षड्यन्त्र किया तो रावजी ने ही महाराज को समय से सचेत कर दिया था। इस प्रकार राव कृपाराम राज्य के कुशल दीवान और मन्त्री ही नहीं, बड़े प्रतिभाशाली, प्रभावशाली, वैभवशाली और पूर्णतया स्वामिभक्त तथा धार्मिक वृत्ति के, अत्यन्प्रदायिक एवं उदार विचारोंयाले महानुभाव और भारी निर्माता भी थे। उन्होंने जयपुर के चाकसू चौक में स्थित विशाल जैनमन्दिर, अपनी सात चौकोंवाली हवेली में दो चैत्यालय, गलता की पहाड़ी का प्रसिद्ध सूर्य-मन्दिर तथा अन्य अनेक सूर्य-मन्दिर बनवाये थे। महाराज की भाँति वह भी ज्योतिर्विज्ञान के प्रेमी रहे लगते हैं। उनका स्वर्गवास 1747 ई. में हुआ। राब कृपाराम के कोई पुत्र नहीं था। अतएव इनका अन्त्येष्टि संस्कार (क्रियाकर्म) आदि उनके छोटे भाई फतहराम पाण्ड्या ने किया था। एक अन्य भाई भगतराम पाण्डचा थे।
फतहराम पाण्या --राव कृपाराम के छोटे भाई थे और 1793 ई. से 1756 ई. तक जयपुर राज्य के दीवान रहे। पहले सवाई जयसिंह के तदनन्तर उनके उत्तराधिकारियों-ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के राज्यकाली में । सन् 1757 ई. में उन्हें जयपुर राज्य का वकील बनाकर दिल्ली दरबार में भेजा गया। राज्य की ओर से उन्हें कई गाँव जागोर में मिले थे और चार हजार रुपये वार्षिक वेतन मिलता था।
उत्तर मध्यकाल के शासपूत राज्य :: 389