SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राज्य से मार भगाया और आमेर पर अधिकार कर लिया। चाहते तो स्वयं राजा बन जाते, किन्तु स्वामिभक्त थे, आमेरपति जयसिंह को उदयपुर से बुलाकर उनका राज्य उन्हें सौंप दिया। इसपर बादशाह रुष्ट हो गया और दिल्ली दरबार में जयसिंह को क्षमा कर देने की कार्यवाही चल रही थी, यह स्थगित कर दी गयी तथा महाराज को आदेश दिया गया कि दीवान को तुरन्त अपनी सेवा से हटा दें। महाराज ने स्वभावतया यह शर्त स्वीकार नहीं की और 1239 ई. तक सम्भवतया अपनी मृत्युपर्यन्त रामचन्द्र अपने पद पर बने रहे। उन्होंने अपने महाराज के आदेश पर जोधपुर से भी शाही सेना को मार भगाया और अजीतसिंह को उसके राज्य पर पुनः प्रतिष्ठित कर दिया। ये घटनाएँ 1707-1708 ई. की हैं। जब सॉभर प्रदेश के अधिकार को लेकर जयपुर और जोधपुर राज्यों में विवाद हुआ तो उसका निपटारा करने के लिए दोनों राजाओं ने दौवान रामचन्द्र को ही पंच बनाया और उन्होंने साँभर का आधा-आधा भाग दोनों को देने का निर्णय दिया। इस सेवा के उपलक्ष्य में दीवान को भी साँभर से प्राप्त नमक का एक भाग वार्षिक मिलता रहा। इस झगड़े के पूर्व साँभर क्षेत्र पर भी मुग़लों ने अधिकार कर लिया था और रामचन्द्र छाबड़ा ने उनके चंगुल से उसे निकाला ।" अपने महाराज पर बादशाह को प्रसन्न करने में भी वह सहायक हुए। उनके साथ स्वयं दिल्ली गये और जब बादशाह ने महाराज को मालवा की सूबेदारी दी तो यहाँ भी उनके यहाँ भी उनके साथ गये। दीवान रामचन्द्र अनेक युद्धों में सम्मिलित हुए थे। वह दूद्वारे (आमेर) राज्य की ढोल भी कहलाते थे। महाराज ने उन्हें अनेक जागीरें प्रदान की थीं। इनके विषय में कहा जाता था कि यह टेढ़े को सीधा और सीधे को निहाल कर देते थे। वह घर के, पृथ्वी के और प्रजा के रक्षक थे और महाराज जयसिंह कहते थे कि रामचन्द्र तू ही सच्चा दीवान है। ये धर्मानुरागी भी थे। साहीवाड़ का जिनमन्दिर, उज्जैन की नशियाँ और दिल्ली में जयसिंहपुरे का जैनमन्दिर इन्हीं दीवान रामचन्द्र के बनवाये हुए हैं। अन्तिम निर्माण 1724 ई. में हुआ और यह 'महावीर चैत्यालय' कहलाता था । फतहचन्द छाबड़ा - दीवान रामचन्द्र छाबड़ा के छोटे भाई थे और धार्मिक वृत्ति के सज्जन थे। उन्होंने 1708 ई. से 1724 ई. तक महाराज जयसिंह के ही शासन में दीवानगिरी की थी। किशनचन्द्र छाबड़ा - दीवान रामचन्द्र छाबड़ा के पुत्र थे । इन्हें 1710 ई. में ही किसी विशेष राज्यसेवा के उपलक्ष्य में 100 बीघा भूमि राज्य से प्राप्त हुई। यह भी अपने समय में राज्य के दीवानों में से थे। इनकी मृत्यु 1758 ई. में हुई थी। इनके पुत्र दीवान भीवचन्द छाबड़ा थे। राव जगराम पाण्ड्या - 1717 ई. से 1733 ई. तक महाराज सवाई जयसिंह के शासनकाल में राज्य के दीवान रहे। जयपुर प्रदेश के कस्वा चाटसू के संस्थापक 536 : प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy