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संधमार धुरन्धर, जिनपूजापुरन्दर जिनप्रतिष्ठाकरणैकतत्पर इन धर्मात्मा सेट ने 1602 ई. में दूधूनगर में बिम्ब प्रतिष्ठा करायी थी और दूध, चूरू, बाँदर, सींदरी, सारखुर एवं अराई नामक स्थानों में विशाल जिनमन्दिर बनवाये थे। इन्हीं के सुपुत्र आमेर राज्य के सुप्रसिद्ध महामन्त्री मोहनदास भाँक्सा थे।
संघी कल्याणदास - महामन्त्री मोहनदास भाँवसा के ज्येष्ठ पुत्र थे और उनकी मृत्यु के उपरान्त मिर्ज़ा राजा जयसिंह के दीवान हुए। यह 1666 ई. में विद्यमान थे। राज्य के तत्कालीन अभिलेखों में आमेर के दीवान संधी कल्याणदास' के रूप में उनका उल्लेख हुआ है। बिमलदास और अजितदास उनके छोटे भाई थे। संघी अजितदार भी प्रतिष्ठित व्यक्ति थे- जयपुर का संघीजी का मन्दिर इनके (अथवा इनके पुत्र या पौत्र ) द्वारा बनवाया गया कहा जाता है। संघी कल्याणदास सम्भवतया जयसिंह के पुत्र एवं उत्तराधिकारी महाराज रामसिंह (1667-88 ई.) के समय भी राज्य के दीवान रहे थे।
बल्लूशाह छाबड़ा-महाराज रामसिंह के दीवान थे। राजा शिवाजी को मुगल दरबार में लाने के सम्बन्ध में बात चीत करने और लिए महाराज ने बल्लूशाह को भेजा था । सम्भवतया मिजा जयसिंह के समय से ही वह राज्य सेवा में उच्च पद पर नियुक्त थे।
विमलदास छाबड़ा - बल्लूदास के पुत्र थे और रामसिंह तथा उत्तके उत्तराधिकारी महाराज विशनसिंह (1689-1700 ई.) के समय में दीवान थे, बड़े साहसी और युद्धवीर भी थे। लालसोट के युद्ध में उन्होंने वीरगति पायी थी। इनके दो पुत्र थे, रामचन्द्र और फतहचन्द, जी दोनों ही अपने समय में राज्य के दीवान हुए ।
दीवान रामचन्द्र छाबड़ा - बल्लूशाह के पौत्र और दीवान विमलदास छाबड़ा के पुत्र रामचन्द्र छाबड़ा सम्भवतया अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त 1690 ई. के लगभग ही राजा विशनसिंह के दीवानों में मर्ती हो गये थे और उसके उत्तराधिकारी महाराज सवाई जयसिंह (1701-1743 ई.) के समय में तो राज्य के प्रधान अमात्यों में से थे। महाराज के वह दाहिने हाथ सरीखे थे। राजनीति एवं शासन प्रबन्ध में अति दक्ष होने के साथ-साथ वह भारी युद्धवीर, कुशल सेनानी और स्वाभिमानी थे । जयपुर के जयसिंह और जोधपुर के अजीतसिंह परस्पर साले -बहनोई थे। दिल्ली की गद्दी के लिए हुए उत्तराधिकार युद्ध में इन दोनों राजाओं ने शाहजादा आजम का पक्ष लिया था। अतएव सम्राट् बनने पर बहादुरशाह (1707-12 ई.) ने दोनों राज्यों पर चढ़ाई करके उन्हें विजय कर लिया और खालसा घोषित कर दिया। दोनों सजा भागकर उदयपुर चले गये। जयसिंह के साथ उसके दीवान रामचन्द्र भी थे। उदयपुरवालों की कोई व्यंग्योक्ति सुनकर वह अकेले जयपुर के लिए चल पड़े। सेना एकत्र की और छलबल -कौशल से मुगलों के प्रतिनिधि सैयद हुसैन अली को अपने
उत्तर मध्यकाल के राजपूत राज्य : 337