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अत्यन्त व्यवहार कुशल, राजनीति-निपुण, युद्धवीर एवं कर्तव्यनिष्ठ सेनापति था। अपने उक्त प्रशासन काल में यह सफल ही रहा। अन्ततः एक युद्ध में ही उसने वीरगति पायी। उसके समय में ही मराठों ने बड़ौदा पर 1784 ई. में अधिकार किया था। उसी वर्ष रतनसिंह ने वीरमगाम के सामन्त भवसिंह का दमन किया था, पेललद के शासक धनरूप भण्डारी की मृत्यु हुई और अहमदाबाद के प्रधान सेठ खुशालचन्द से रूष्ट होकर रतनसिंह ने उसे देश से निर्वासित कर दिया। इस खुशालचन्द के पितामह शान्तिदास ने ई. में पार्श्वनाथ जिनालय ५. में औरंगजेब से अपनी गुजरात Mother related at बनाया था जिसे 1644 सरसपुर (अहमदाबाद) में सूबदारी के काल में तुड़वाकर एक मस्जिद बनवायी थी, किन्तु सम्राट् शाहजहाँ ने फिर से उस मन्दिर को बनाने की आज्ञा दे दी थी। शान्तिदास बाद में औरंगज़ेब का भी कृपापात्र हो गया था। निर्वासित खुशालचन्द की मृत्यु 1748 ई. में हुई। रतनसिंह भण्डारी को 1735 ई. में घोलका की जागीर दे दी गयी थी। इस प्रसंग में उसका बादशाह के सोहराबखाँ, मोमिनख़ाँ आदि कई मुसलमान सरदारों के साथ काफी संघर्ष हुआ, जिसमें वह प्रायः विजयी रहा। उसकी हत्या के भी षड्यन्त्र किये गये। मराठों, मुसलमानों, स्थानीय राजपूत सामन्तों आदि के साथ उसके कूटनीति और युद्ध के क्षेत्र में निरन्तर इन्द्र चलते रहे। उसने 1938 ई. में दूदेसर की तीर्थयात्रा भी की थी। जब 1745 ई. में बीकानेर नरेश जोरावरसिंह की मृत्यु हुई तो नदी के दो दावेदार हो गये जिनमें से राजसिंह सफल हो गया तो अमरसिंह ने जोधपुर नरेश अभयसिंह से सहायता की याचना की । रतनसिंह भण्डारी के अधीन सेना भेजी गयी। कई भीषण युद्ध हुए जिनमें भण्डारी ने अद्भुत शौर्य प्रदर्शित किया। अन्तिम युद्ध 1747 ई. में वाहन नामक स्थान में हुआ था। युद्ध की समाप्ति पर जब रतनसिंह भण्डारी लौट रहा था तो एक बीकानेरी भालाबरदार ने धोखे से पीछे से उसपर आक्रमण करके उस वीर की हत्या कर दी।
डूंगरपुर - वासवाड़ा - प्रतापगढ़
इस प्रदेश में जैनधर्म के प्रचलित रहने के साक्ष्य 10वीं शती ई. से ही मिलते हैं । दिगम्बर साधुओं का बागड़गच्छ यहीं से निकला था। जयानन्द की प्रवासगीतिका के अनुसार गिरिवर (डूंगरपुर) में 1370 ई. में पांच जिनमन्दिर और जैन श्रावकों के 500 घर थे। उसी समय के लगभग सागवाड़ा ( शाकपतन) में नन्दिसंघ की भट्टारकीय गद्दी भी स्थापित हुई। डूंगरपुर में रावल प्रतापसिंह के मन्त्री प्रह्लाद ने 1404 ई. में एक जिनमन्दिर बनवाया था। रावल राजपाल के मन्त्री आभा ने अंतरी में शान्तिनाथ जिनालय बनवाया था और रावल सोमदास के मन्त्री साला में पीतल की भारी-भारी जिनमूर्तियाँ बनवाकर आबू के मन्दिरों में प्रतिष्ठित करायी थीं तथा डूंगरपुर के प्राचीन पार्श्वनाथ जिनालय का पुनरुद्धार कराया था। प्रतापगढ़ राज्य में 14वीं- 15वीं शती
334 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ