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अपने श्री सुधिर
की प्रतिष्ठित अनेक जिनमूर्तियों मिलती हैं। देवली के 1715 ई. के शिलालेख के अनुसार राजा पृथ्वीसिंह के राज्य में सोरया एवं जीवराज नामक जैन महाजनों की प्रेगर से उस ग्राम के तेलियों ने वर्ष भर में 44 दिन अपने कोल्हू बन्द रखने का निर्णय लिया था। उसी समय वहाँ मल्लिनाथ मन्दिर निर्मापित हुआ ।
कोटा- बारा
इस प्रदेश में भी 9वीं 10वीं शती से जैनधर्म के प्रचलन के चिह्न मिलते हैं । रामगढ़ (श्रीनगर) में जैन मुनियों के आवास के लिए बनायी गयी गुफाएँ हैं । कृष्णविलास, केशवर्धन (शेरगढ़) अटक आदि स्थानों में 8वीं से 13वीं शती तक के जैन मन्दिर विद्यमान हैं। चोंदखेड़ी में राजा किशोरसिंह के राज्य में 1689 ई. में कृष्णदास नामक धनी जैन सेठ ने भगवान् महावीर का मन्दिर बनवाया था और सैकड़ों जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करायी थी।
जैसलमेर का भाटी राज्य
यहाँ 10वीं शती में राजा सागर के पुत्र श्रीधर और राजधर ने पाश्र्वनाथ जिनालय बनवाया था, ऐसी किंवदन्ती है। लक्ष्मणसिंह के राज्य में 1416 ई. में चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय अपरनाम लक्ष्मणविलास बना। उसके पुत्र वैरीसिंह के समय में सम्भवनाथ का मन्दिर बना जिसके प्रतिष्ठोत्सव में राजा भी सम्मिलित हुआ । उसके उत्तराधिकारियों के समय में भी अनेक जिनमन्दिर बने तथा जैसलमेर का प्रसिद्ध शास्त्र भण्डार स्थापित हुआ । यहीं सेठ वारुशाह ने 1615 ई. में 10वीं शती के प्राचीन सर्श्वनाथ मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया था ।
नगर ( वीरमपुर ) के राक्त
मरुदेश (जोधपुर- मारवाड़) में ही यह छोटा-सा राज्य था । यहाँ रावल सूर्यसिंह के राज्य में 1612 ई. में वस्तुपाल नामक जैन सेठ ने पार्श्वनाथ जिनालय की प्रतिष्ठापना करायी थी। 1626 ई. में राजा गजसिंह के शासनकाल में जयमल ने जालोर के आदिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर जिनालयों में प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायी थीं। 1629 ई. में पाली और मेड़ता में प्रतिष्ठाएँ हुई और 1787 ई. में मारोठ के जैन दीवान रामसिंह ने जोधपुर नरेश अभयसिंह के राज्यकाल में मारोठ में 'साहो का मन्दिर बनवाया और अनेक जिनप्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायों ।
आमेर (जयपुर) राज्य
राजस्थान का यह पश्चिमी भाग हुँदा के एक कच्छपघातवंशी राजकुमार सोढ़देव ने
देश कहलाता था। नरवर ( ग्वालियर) 10वीं - 11वीं शती ई. में यहाँ जाकर
उत्तर मध्यकाल के राजपूल राज्य : 335