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मेहता जयमल-मेहता अचलोजी के पौत्र थे और 1614-15 ई. में जोधपुर नरेश सुरसिंह के शासनकाल में गुजरात देशस्थ बड़नगर (वादनगर) के सुशार थे, लंदनन्तर फलौदी के शासक नियुक्त हुए। जहाँगीर ने 1617 ई. में वह परगना बीकानेर नरेश सरतसिंह को दे दिया तो बीकानेर की सेना उसपर शिकार करने के लिए आयी, किन्तु मेहता ने उसे पराजित करके भगा दिया। सूरसिंह के पश्चात् गजसिंह जोधपुर का राजा हआ। मेहता जयमल उसके भी कृपापात्र रहे। इस राजा ने 1622 ई. में जब जालोर परगने पर अधिकार किया तो मेहता उसके साथ थे
और जब 1624 ई. में राजा मजसिंह सम्राट् जहाँगीर की सहायता के लिए हाजीपुर-पटना की ओर गये तो जयमल भी फौज मुसाहिब (सैनिक-परामर्शदाता) के रूप में उसके साथ गये थे। सन् 1630 ई. के दुर्भिक्ष में उन्होंने एक वर्ष तक स्वद्रव्य से अकाल पीड़ितों का भरण-पोषण किया था और 1632 ई. में सिरोही के सब अखैराज पर एक लाख 'फ़ीरोजी (मुद्रा विशेष) का दण्ड निर्धारित करके उससे 75000 नकद वसूल किये थे और 25000 बाकी करा दिये थे। वह सन् 1629 ई. से 1638 या 1689 ई. तक जोधपुर राज्य के दीवान एवं प्रधान मन्त्री रहे। उन्होंने 1624 ई. में जालोर, झाबुजय, साँचोर, मेड़ता और सिवाना नामक स्थानों में जिनमन्दिर बनवाये थे। मेहता जयमल को सरूपदे और सुहामदे नाम की दो पत्नियाँ थों । प्रथम से नैणसी (नवनसिंह), सुन्दरदास, आसकरण और मरसिंहदास नाम के चार पुत्र थे और दूसरी से जगमाल नाम का पुत्र था।
मेहता नैणसी-मूता नैणसी या मुहलौत नैणसी (नयनसिंह) इस घराने का सर्वप्रसिस व्यक्ति है। उसका जन्म 1610 ई. में हुआ था और 22 वर्ष की अवस्था के पूर्व ही वह राज्यसेवा में नियुक्त हो गया था। मगरा के मेरों का उपद्रव बढ़ता देख, 1632 ई. में जोधपुरनरेश गजसिंह ने नैणसी को सेना देकर उनका दमन करने के लिए भेजा, जिस कार्य को उसने वीरता एवं कुशलतापूर्वक सम्पादन किया। राजा ने उसे 1687 ई. में फलौदी का शासक नियुक्त किया, जहाँ उसने राज्य के शत्रु दिलोचों के साथ सफल युद्ध किया। जब 1643 में राइधरे के महेचा महेशदास ने राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया तो गजसिंह के उत्तराधिकारी जोधपुरनरेश जसवन्तसिंह ने नैणसी को उसका दमन करने के लिए भेजा था और 1645 ई. में सोबत के राव नरायण का दमन करने के लिए नैष्णसी और उसके भाई सुन्दरदास को भेजा था । दोनों ही अभियान सफल रहे। नैणसी ने कटोरता पूर्वक विद्रोहियों का दमन किया, उनके कोट, महल, गाँब आदि नष्ट कर दिये। बादशाह शाहजहाँ ने जसवन्तसिंह को 1649 ई. में पोकरण परगना दिया था, जिसपर जैसलमेर के भाटी रावल रामचन्द्र का अधिकार था और उसने उसे छोड़ना स्वीकार नहीं किया। महाराज ने नैपसी को भेजा और उसने युद्ध करके उस परगने पर अधिकार कर लिया । रामचन्द्र का प्रतिद्वन्द्वी सवलसिंह जैसलमेर का राजा होना चाहता था। उसने अवसर देख
उत्तर मध्यकाल के राजपूत राज्य :: 529