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________________ के साथ मण्डोर से जोधपुर आया तथा राज्य का दीवान एवं प्रधान मन्त्री नियुक्त हुआ। राजा ने प्रसन्न होकर उसके लिए फतहपाल के निकट एक हवेली बनवायी धी। मेहता रामचन्द्रमोहनजी की 20वीं और महाराजजी की 11वीं पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था। जोधपुर नरेश शुरसिंह के छोटे भाई कृष्णासिंह ने सम्राट अकबर की कृपा प्राप्त करके एक स्वतन्त्र जागीर 1598 ई. में पायी जहाँ 1601 ई. में उसने कृषागढ़ बसाया। सपचन्द्र और उसका छोटा भाई शंकरमणि जोधपर से कृष्णसिंह के साथ ही कृष्णगढ़ चले आये थे और इस राजा के मन्त्री बने थे। राजा ने उनसे प्रसन्न होकर उनके लिए कृष्णगढ़ में दो हवेलियों बनवायीं जो बड़ीपोल और छोटीपोल कहलायीं। मुख्य मन्त्री मेहता रायचन्द्र ने उस नगर में चिन्तामणि पार्श्वनाथ-जिनमन्दिर भी बनवाकर 1615 ई. में प्रतिष्ठित कराया था। कृष्णसिंह के उत्तराधिकारी मानसिंह के समय में भी रायचन्द्र कृष्णगढ़ राज्य का मुख्य मन्त्री रहा। एक महोत्सव के अवसर पर 1659 ई. में राजा ने स्वयं मेहता की हवेली पर पधारकर तथा भोजन करके उसका मान बढ़ाया था। पारितोषिक के रूप में पालड़ी नामक ग्राम भी इसे प्रदान किया था। मेहता रायचन्द्र की मृत्यु 18 ई. में हुई थी। मेहता वृद्धमान, जो सम्भवतया सयसन्द्र का पुत्र था, राजा मानसिंह का तन दीवान (प्राइवेट सेक्रेटरी) था । अतः हर समय महाराज के साथ रहता था। उसकी मृत्यु 1708 ई. में हुई। उसका भाई या भतीजा मेहता कृष्णदास राजा मानसिंह का मुख्य मन्त्री था, क्योंकि राजा प्रायः दिल्ली में रहता था। राज्य का प्रायः सर्वकार्य दीवान कृष्णदास ही करता था। राजा ने 1193 ई. में उसे बुहारु नामक गाँध इनाम दिया था। जब 1699 ई. में नवाब अबदुल्लारखा कृष्णगढ़ में शाही थाना स्थापित करने के लिए सेना लेकर चढ़ आया था तो मेहता कृष्णदास ने उसके साथ युद्ध करके उसे पराजित किया था। कृष्णदास की मृत्यु 1706 ई. में हुई। सम्भवतया इनका पुत्र मेहता जासकरण 1708 ई. में कृष्णगढ़ नरेश राजसिंह का मुख्य दीवान था। इनका पुत्र या भतीजा मेहता देवीचन्द रूपनगर के राजा सरदारसिंह का मुख्य दीवान था। मेहता अचलोजी-मोहनजी को वि और मेहता महाराजजी की प्रचों पीढ़ी में उत्पन्न अचलोजी मेहता अर्जुनजी के बड़े भाई थे और 1562 ई. में जब रायाचन्द्र सेन जोधपुर की गद्दी पर बैठा तो उसने इन्हें अपना मन्त्री बनाया था। डूंगरपुर से जोधपुर आते समय सोजन परगने के सबसड़ गाँव में जय महाराज का मुगलों के साथ युद्ध हुआ तो अपलोजी भी उनके साथ थे। अन्य अनेक युद्धों में भी यह जोधपुर नरेश के साथ रहे और 1578 ई. में मदराड़ के युद्ध में ही उन्होंने धीरगति पायी थी। राज्य की ओर से उनका स्मारक (छत्री) बनवाया गया जो शायद अक्तक विद्यमान है। 326 :: प्रमुख ऐतिहासिक अन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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