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________________ और वह घोड़े की अपनी र ो पोल्पो में जहरे, ससैन्य शत्रुओं पर यह कहते हुए टूट पड़े, 'सरदार, अब मेरा आटा तौलना देखो।' अनेक शत्रुओं को मृत्यु के घाट उतारकर इस शूरवीर महाजन ने उसी युद्ध में वीरगति प्राप्त की और अपना तथा अपने स्वामी का नाम उज्ज्वल किया। इन राणा संग्रामसिंह ने राज्य के जैन तीर्थ ऋषभदेव को एक ग्राम दान में दिया ! मेहता मेघराज ब्यौदीवाल-पूर्यकाल में मेवाड़ के रावल करणसिंह के सहप, माह और सरवण नाम के तीन पुत्र थे । राष्ट्रप मेवाड़ के राणा हुए 1 माहप ने दूंगरपुर राज्य की स्थापना की और सरवणजी जैनधर्म अंगीकार करके ओसवालों में सम्मिलित हुए । राहपजी ने उन्हें चौड़ी (जनानखाना या अन्तःपुर) की रक्षा का भार सौंपा और यह ड्यौदीबाल कहलाये। तब से वह पद इस कुल में चलता रहा। सरतणजी ने चित्तौड़ में शीतलनाथ का मन्दिर बनवाया था। उसके पुत्र सरीपत को मेहता की पदवी मिली। सरीपत के मेघराज को छोड़कर अन्य सब वंशज राणा उदयसिंह के समय में चित्तौड़ के अन्तिम युद्ध में लड़कर वीरगति को प्राप्त हुए थे। मेघराज राणा के साथ उदयपुर चले आये थे और अपने कुलक्रमागत पद पर रहे। उन्होंने उदयपुर मैं शीतलनाथ का मन्दिर बनयाया और 'मेहतों की टोबा नामक मोहल्ला बसाया मारवाड़ (जोधपुर) राज्य मारवाड़ (मरुदेश) में कन्नौज के जयचन्द्र गाडवाल के पौत्र सौहाजी ने भागकर शरण ली थी और अपना छोटा-सा राज्य स्थापित कर लिया था। यह वंश रागड़ नाम से प्रसिद्ध हुआ। मण्डोर उसकी राजधानी थी। इस वंश के सबजोधा ने 1459 ई. में जोधपुर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया । तभी से राठौड़ों का यह जोधपुर राज्य अधिक प्रसिद्ध हुआ। इस राज्य में प्रायः सदैव अनेक जैनी मन्त्री, दीवान, भण्डारी आदि पदों पर तथा अन्य राज्यकर्मचारियों के रूप में कार्य करते रहे। राज्य की जनसंख्या का कम-से-कम पाँच-छह प्रतिशत जैन थे। इस राम्य के जैन राजपुरुषों में सर्वप्रसिद्ध वंश मुहलौतों का रहा। मारवाड़ के राव रायपाल (1246 ई.) के 18 पुत्र थे जिनमें चौथे (वा दूसरे) मोहनजी थे। इनकी प्रथम पत्नी जैसलमेर के भाटी सब जोरावरसिंह की पुत्री थी जिससे कुँबर भीमराज उत्पन्न हुए और उनसे राठौड़ों का भीमावत वंश चला। तदनन्तर मोहनजी ने ऋषि शिवसेन के उपदेश से जैनधर्म अंगीकार कर लिया और मिनमाल परगने के गाँव पञ्चपदरिये के श्रीमाल जातीय जीवनोत छाजू की पुत्री से विवाह किया, जिससे सुमसेन (सम्पत्तिसेम या सपत्तसेन) नामक पुत्र हुआ। उसने भी जैनधर्म अंगीकार किया और उसके यंशज महनौल ओसवाल हुए। मेहता महाराजजी-मोहनजी की पी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ और रावजोधा उत्तर मध्यकाल के राजपूत राज्य :: 327
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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