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________________ मानसिंह के साथ 1576 ई. में हुए महाराणा प्रतापसिंह के इतिहासप्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में वीरवर ताराचन्द तथा मेहता जयमल बच्छावत, मेहता रतनचन्द खेतावत आदि कई अन्य जैन सामन्त भी राणा के साथ थे और उन्होंने मुगल सेना के साथ अत्यन्त वीरतापूर्वक युद्ध किया था। उस युद्ध में पराजित होकर राणा तो अपने बचे-खुचे साथियों और परिवार को लेकर जंगलों और पहाड़ों में चले गये और ताराचन्द अपनी टुकड़ी के साथ मालवा की ओर चला गया। वहाँ अकबर के सरदार माँ के उसे जा रा है उसका साथ जूझता हुआ ताराचन्द बसी के जंगल के निकट जा पहुँचा, जहाँ वह अत्यन्त घायल होने के कारण बेहोश होकर घोड़े से मिर पड़ा। बसी का राय साईंदास देवड़ा घायल ताराचन्द को उठाकर अपनी गढ़ी में ले गया और वहाँ उसको समुचित परिचर्या की । स्वस्थ होकर वह सादड़ी लौट गया। तदनन्तर राणा की सहायता के लिए अपने भाई भामाशाह के साथ मालवा पर आक्रमण किया और लूट का धन लाकर राणा को अर्पण कर दिया। वह अन्त तक अपने राणा और स्वदेश की एकनिष्ठता के साथ सेवा करता रहा। सादड़ी ग्राम के बाहर ताराचन्द ने एक सुन्दर बारहदरी बनवायी थी, जिसमें उसकी स्वयं की, उसकी चार पत्नियों की एक खवास की छह गायिकाओं की तथा एक गवैये और उसकी पत्नी की मूर्तियाँ पाषाण में उत्कीर्ण हैं। harstarte भामाशाह --- भारमल कावड़िया का पुत्र और वीर ताराचन्द का भाई भामाशाह राणा उदयसिंह के समय से ही राज्य का दीवान एवं प्रधान मन्त्री था हल्दीघाटी के युद्ध ( 1576 ई.) में पराजित होकर स्वतन्त्रताप्रेमी और स्वाभिमानी राणा प्रताप जंगलों और पहाड़ों में भटकने लगे थे। वहाँ भी मुगल सेना ने उन्हें चैन न लेने दिया। अतएव सब ओर से निराश एवं हताश होकर उन्होंने स्वदेश का परित्याग करके अन्यत्र चले जाने का संकल्प किया। इस बीच स्वदेशभक्त एवं स्वामिभक्त मन्त्रीवर भामाशाह चुप नहीं बैठा था। यह देशोद्धार के उपाय जुटा रहा था। ठीक जिस समय राणा भरे मन से मेवाड़ की सीमा से विदाई ले रहा था, भामाशाह आ पहुँचा और मार्ग रोककर खड़ा हो गया, उन्हें ढाढ़स बँधायी और देशोद्धार के प्रयत्न के लिए उत्साहित किया। राणा ने कहा, न मेरे पास फूटी कौड़ी है, न सैनिक और साथी ही, किस बूते पर यह प्रयत्न करूँ? भामाशाह ने तुरन्त विपुल द्रव्य उनके चरणों में समर्पित कर दिया इतना कि जिससे पचीस हजार सैनिकों का बारह वर्षों तक निर्वाह हो सकता था और यह सब धन भामाशाह का अपना पैतृक तथा स्वयं उपार्जित किया हुआ सर्वथा निजी था। इस अप्रतिम उदारता एवं अप्रत्याशित सहायता पर राणा ने हर्षविभोर होकर भामाशाह को आलिंगनबद्ध कर लिया। वह दूने उत्साह से सेना जुटाने और मुग़लों को देश से निकाल बाहर करने में जुट गये। अनेक युद्ध लड़े गये, जिनमें वीर भामाशाह और ताराचन्द ने भी प्रायः बराबर भाग लिया। इन दोनों भाइयों ने मालवा पर, जो मुगलों के अधीन था, चढ़ाई उत्तर मध्यकाल के राजपूत राज्य : 323
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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