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________________ नगर के एक प्रसिद्ध जैन व्यापारी थे। यह उस नगर में बसे बारह जैन व्यापारी परिवारों के मुखिया थे। पावापुरी, राजगिर में उनके द्वारा और गुणास कुण्डलपुर 1629 से 1650 तक की प्रतिष्ठापित कई प्रतिमाएँ हैं। वह औरंगज़ेब के समय तक जीवित रहे प्रतीत होते हैं। बिहार शरीफ के उक्त जैन परिवारों ने पावापुरी में मन्दिर भी बनवाये बताये जाते हैं। कुँवरपाल - सोनपाल ओसवाल जाति के थे दोनों भाई आगरा से आकर 17वीं शती ई. में बिहार की राजधानी पटना में आ बसे थे और व्यापार में अच्छी उन्नति करके अति सम्पन्न हो गये थे। उन्होंने कई मन्दिर एवं मूर्तियाँ प्रतिष्ठित करावी थीं। मिर्जापुर में भी एक मन्दिर बनवाया था। पटना नगर के बेगमपुर मोहल्ले में उस काल में जैनों की अच्छी वस्ती थी। अकबरपुर, ढाका, भागलपुर, हाजीपुर, अजीमगंज, मुर्शिदाबाद, मकसूदाबाद, बिहारशरीफ़ आदि बंगाल और बिहार के प्रमुख नगरों में राजधानी पस्न जैन व्यापारियों को अनी हस्तियाँ श्री. 1 जगतूसेठ घराना - 17वीं शताब्दी ई. के उत्तरार्ध में, सम्भवतया 1661 ई. के लगभग, आगरा के हीरानन्द शाह नामक ओसवाल जैन सेठ बिहार प्रान्त के पटना नगर में जा बसे थे। मूलतः वह राजस्थान, सम्भवतया बीकानेर प्रदेश, से आगरा आये थे। पटना के बेगमपुर मोहल्ले में रहकर उन्होंने व्यापार में अच्छी उन्नति की, किन्तु थोड़े समय पश्चात् बंगाल-बिहार के सूबेदार की राजधानी मुर्शिदाबाद में स्थानान्तरित हो गये । यहाँ उनके नाम का एक मोहल्ला अब भी विद्यमान बताया जाता है। मकसूमाबाद में भी इनकी हवेली थी। हीरानन्द शाह 1700 ई. के लगभग तक जीवित रहे प्रतीत होते हैं। उनके पुत्र सेठ माणिकचन्द्र ने अपना प्रधान केन्द्र मकसूमाबाद को ही बनाया। उन्होंने बड़ी उन्नति की और 'राजा' की उपाधि भी प्राप्त की। राजा, प्रजा, उमराव, फौजदार, सूबेदार, नवाब आदि सब ही इस सेठ की आज्ञा को प्रणाम करते थे और स्वयं दिल्ली का बादशाह उनका बड़ा सम्मान करता था । बादशाह फ़र्रुखसियर (1718-19 ई.) ने उन्हें दिल्ली बुलाकर 'सेट' (राज्यसेठ) का पद दरबार में जलसा करके दिया था। बंगाल देश के इस धन की सम्पत्ति दिन-प्रतिदिन वेग से बढ़ रही थी। उनके प्रतापी पुत्र फ़तहचन्द ने और भी अधिक नाम कमाया। उनकी साख और वैभव की धाक सर्वत्र थी। दिल्ली के बादशाह, सम्भवतया मुहम्मदशाह रंगीले (1719-48 ई.) ने उन्हें 'जगत्सेट' की उपाधि प्रदान की थी। मुर्शिद मकसूमाबाद का यह जगत्सेट घराना उस काल का बंगाल-बिहार का सर्वाधिक प्रतिष्ठित घराना समझा जाता था। उसकी साहूकारी महाजनी गद्दी भी देश भर में सर्वोपरि थी ये जगत्सेत बंगाल के नवाबों को तथा उसके राजस्व वसूल करनेवाले ठेकेदारों, चकलादारों, जमींदारों, उपराजाओं और सरदारों को तथा अँगरेज़ आदि विदेशी व्यापारियों को भी मनमाना ऋण देते थे। सभी उच्च वर्गों के साथ उनका लेन-देन का व्यापार चलता था। इसी कारण उस प्रदेश की राजनीति में भी 320 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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