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दानशीला और धमात्मा पली हेवरदे थी और प्रयागदास, हीरानन्द और कुन्दरदास नाम के तीन सुपुत्र थे। तीनों भाइयों के पुत्र-पौत्रादि थे। साह हीरानन्द राजसभाशृंगार, सम्यक्त्यमूल, स्थूल-द्वादशवतधारक, सज्जन-जनसुखकारक, सुश्रायक, पुण्यप्रभावक, जैनसभा-मण्डन, मिथ्यानवखण्डन, दाम में श्रेयांसायतार, परोपकार में युधिष्टिरावतार, सर्वोपमायोग्य, धनीमानी और धर्मात्मा थे। उन्होंने अनेक धर्मकार्य किये थे। शाहशादी, रामों और दया नाम की उनकी तीन पत्नियाँ थी, जिनमें सबसे छोटो दया बड़ी सुशील, दानशील, विनयी और धर्मात्मा थी। इनका पुत्र जटमल था। इन साह हीरानन्द ले काष्ठासंधी भारका महीना शिष्य हाताार को 1669 ई. में लाभापुर (लाहौर) में 'सम्यक्त्यकौमुदी' आदि ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ कराकर भेंट की थीं।
वादिराज सोगानी-तक्षकपुर (राजस्थान के जयपुर प्रदेश का टोहानगर या टोडारायसिंह) के सोगानी-गोत्री खण्डेलवाल जैन पोषराज श्रेष्ठ के पुत्र और महाराज जवसिंह के सामन्त टोडानगर के राजा भीमसिंह के पुत्र एवं उत्तराधिकारी सजा राजसिंह के मन्त्री थे। यह राजनीतिकुशल होने के साथ ही बड़े विद्वान्, कांधे और शास्त्रज्ञ भी थे। इनके ज्येष्ठ भ्राता गद्य-पद्य-विद्या-विनोदाम्बुधि कविचक्रवर्ती पण्डिल जगन्नाथ थे जो आमेर के भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के मुख्य शिष्य थे और जिन्होंने 'चतुर्विंशतिसन्धानकाता' {1642 ई.), 'सुखनिधान (1643 ई.), 'श्वेताम्बर-पराजय' (1645 ई.), "नेमिनरेन्द्र-स्तोत्र', 'शृंगारसमुद्रकाव्य' 'सुषेणचरित्र' आदि संस्कृत काव्य-ग्रन्थों की रचना की थी। स्वयं मन्त्री थादिसज भी संस्कृत भाषा के प्रौढ़ विवान् और सुकवि थे। 'झामलोचन-स्तोत्र' तथा 'वाग्भटालंकार' की 'कविचन्द्रिका' नाम्मी टीका, जिसे उन्होंने 1672 ई. में पूर्ण किया था, उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इस समय उन्होंने राज्यसेवा से अवकाश प्राप्त कर लिया था। रामचन्द्र, लालजी, नेमिदास और विमलदास नामक उनके चार पुत्र थे। उस काल में भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति प्रायः टोडानगर में ही रहते थे और उन्होंने अपने प्रवास से उक्त नगर को उत्तम ज्ञानकेन्द्र बना दिया था।
दीवान ताराचन्द..औरंगजेब के शासनकाल में फतेहार के नवाथ (फौजदार या सूबेशर) अलफ़खाँ के दीवान थे। उनके पिता का नाम स्तुपाल था। दीवान ताराचन्द विद्यारसिक भी थे। उन्होंने 1671 ई. में यति लक्ष्मीचन्द्र से शुभचन्द्राचार्य कृत 'ज्ञानार्णव' नामक ग्रन्थ का ब्रजभाषा हिन्दी में पद्यानुवाद कराया था।
शान्तिदास जौहरी-अहमदाबाद के प्रसिद्ध जौहरी थे और शाहजहाँ के राज्यकाल में जब शाहजादा मुराद गुजरात का सूबेदार था तो वह उसके कृपापात्र रहे थे। गद्दी पर बैठने के उपरान्त औरंगजेब ने उन्हें अहमदाबाद से बुलाकर अपना दरबारी नियुक्त किया था।
संघवी संग्रामसिंह-17वीं शती के पूर्वार्ध में बिहार प्रान्त के बिहार-शरीफ़
मध्यकाल : उत्तराई :: 919