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में समुकुटागोत्री, गोलापूर्ववंशी, जैनवैश्य संघपति आसकरण निवास करते थे। उनकी भार्या का नाम मोहनदे था और ज्येष्ठ पुत्र संघपति रतनाई था, जिसकी पत्नी का नाम साहिदा था और नरोत्तम, मण्डम, राधय, मनोरथ और नन्दि नाम के पाँच पुत्र थे। आसकरण के द्वितीय पुत्र संघपति हीरामणि की कमला एवं वासन्ती नाम की दौ पलियाँ और बलभद्र नाम का एक पुत्र था। यह पूरा परिवार धर्मात्मा और जिनभक्त था । संघपति आसकरण ने अपने पूरे परिवार सहित 161 ई. में दमोहप के भट्टारक ललितकौर्ति के शिष्य क्षुल्लकब्रतधारी ब्रह्म सुमतिदारा के उपदेश से जेरठ के भट्टारक सकलकीर्ति के शिष्य पपिडत धारिकादास ने एक महान् शान्तियज्ञ समारोह कराया था और उसके लिए विभिन्न स्थानों की सपाओं के लिए निमन्त्रण पत्रिकादि (विज्ञप्तिपत्र या पट्ट अभिलेख) फेजे थे। धमौनी पर उस काल में मुगल सम्राट् औरंगजेब के फ़ौजदार (सूबेदार) रुबुल्लाहलों का शासन था जो संघपति आसकरण को बहुत मानता था। विधान धमौनी के चन्द्रप्रभ-जिमालय में किया गया था। आसकरण बड़े धन-सम्पन्न, उदार और धर्मात्मा थे। उन्होंने कई नवीन जिनमन्दिर बनवाये थे और कई शुमानो कशद्वार
अ सा वितरण' में वह राजा श्रेयांस के समान थे। वह शुद्धसम्बवदालंकार-भारोद्धरणधीर थे और उस समय श्रावक के बारह व्रतों के पालक और छठीप्रतिमाधारी थे।
वर्धमान नवलखा-सिन्ध देशस्थ मुलतान नगर में आगरा के एण्डितप्रदर बनारसीदास और उनकी आध्यात्मिक शैली से प्रेरणा प्राप्त करके तथा उनके प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्मकले अध्यात्मरसिक श्रावकों की एक उत्तम मण्डली बन गयी थी। उसके नेता नवलखागोत्री पाहिराज साह के पुत्र यह शाह वर्धमान नवलखा थे। इनके साथ सुखानन्द, मिट्टमल भणसाली, शाह करोड़ी, नेमोदास, धर्मदास, शान्तिदास, भिट्ट पुत्र सुरुज, चाहडमल शरखेला, करमचन्द्र, जेठमल, श्रीकरण, ताराचन्द, ऋषभदास, पृथ्वीराज, शिवराज आदि सज्जन थे। ये लोग अपना धर्माचार्य और धर्मगुरु बनारसीदासजी को मानते थे। वे मुनिराल कुन्दकुन्द, अमृतचन्द्र और राजमल्त के ग्रन्थों का स्वाध्याय करते थे तथा दिगम्बर आम्नाय के शास्त्रों को और श्वेताम्बर आम्नाय के (साधु) वेष की मान्य करते थे। लगभग 1650 से 1690 ई. पर्यन्त के इन मुलतानी अध्यात्मी श्रावकों के उल्लेख मिलते हैं। स्वयं शाह वर्धमान नवलखा ने अपनी वर्धमान-वचनिका 1689 ई. में रची थी । मुलतान नगर का पार्श्वनाथ-मन्दिर इस अध्यात्मिक गोष्ठी का केन्द्र था। इसके वर्धमान नवलखा आदि प्रमुख सदस्य पं. बनारसीदासजी से भेंट करने आगरा भी मये प्रतीत होते हैं।
साह हीरानन्द अग्रवाल-लोहाचार्य आम्नायी, अनवाल ज्ञातीय, मीतलमोत्री, टोलावंशी, 'पंडयालपति' साह हेमराज लाहौर नगर में निवास करते थे। उनकी शील-सांय-तरंगिणी भार्या लटको थी और पुत्र शील में सेठ सुदर्शन के अवतार, सज्जनजन-सुखकार, धर्माधार साह भगवानदास थे। उनकी पतिपरायणा, रूपवली,
3318 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ