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________________ सर्वाधिक मेधावी थे। वाराणसी जाकर उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। तदनन्तर दरियापुर में आ बसे, किन्तु यहाँ भी स्थिर न हुए और यत्र-तत्र भ्रमण करते हुए साहित्य सृजन एवं ज्ञान का प्रसार करते रहे। साह गागा - सिरोही के महाराज अखराज के राज्य में युवराज उदयभाण के आश्रित प्राग्वाट कुल के साह गागा और उसकी भाव मनरंग के पुत्रों, पौत्रों आदि ने 1641 ई. में तपागच्छाचार्य हीरविजयसूरि के परम्पराशिष्य अमृतविजयमणि से पार्श्वनाथ एवं शान्तिनाथ की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायी थीं। मोहनदास त भौंसा आमेर के प्रसिद्ध मिर्जा राजा ज जयसिंह के, जो शाहजहाँ और औरंगजेब के प्रधान सरदार, सामन्त एवं सेनापति थे, मुख्यमन्त्री और आमेर नगर के शासक यह मोहनदास माँसा ( भोवसा) थे। यह आमरपट्ट के भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति की आम्नाय के श्रावक थे और उन्हीं के उपदेश से उन्होंने अम्बावती (आमेर, जयपुर राज्य की पुरानी राजधानी) में 1657 ई. में भगवान् विमलनाथ का विशाल मन्दिर निर्माण कराया था जो अब 'संघवी घूँटाराय का मन्दिर' नाम से प्रसिद्ध है और 1659 ई. में उक्त मन्दिर पर स्वर्णकलश चढ़ाया था। सम्भवतया इन्हीं मोहनदास भौंसा के पुत्र राजमन्त्री अमरा भौंसा थे। उन्होंने भी एक नया मन्दिर बनवाया था और तेरापन्य शुद्धाम्नाय का संवर्धन किया था। उन्हीं भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के उपदेश से गोयलगोत्री अग्रवाल संघपति तेजसा उदयकरण ने गिरनार पर एक सम्यक् चारित्रयन्त्र 1652 ई. में प्रतिष्ठित कराया था, सम्भवतया वह उक्त भट्टारकजी तथा संघ को लेकर गिरनार की यात्रा के लिए गये थे। उन्हीं भट्टारकजी के एक अन्य प्रमुख भक्त गर्मगोत्री अग्रवाल साह नन्दराम के पुत्र संघाधिपति जयसिंह थे, जिन्होंने 1659 ई. में अम्बावती (आमेर) में ही एक थर्मोत्सव किया था और यन्त्रादि प्रतिष्ठित कराये थे तथा यात्रासंघ चलाया था। महामन्त्री मोहनदास भवसा का जन्म 1599 ई. के लगभग हुआ था और विवाह 1606 ई. में हुआ था। वह जिनपूजापुरन्दर, सम्यक्त्वालंकृतगात्र विप्रदानेश्वर, जिनप्रासादोदधरणधीर, निजयशसुधाघवलीकृत विश्व और संघाधिपति कहलाते थे। कल्याणदास, विमलदास और अतिदास नाम के उनके तीन पुत्र थे । अरुणमणि स्वालियर पट्ट के काष्ठासंघो भट्टारक श्रुतकीर्ति के शिष्य बुधराघव थे, जिन्होंने गोपाचल (ग्वालियर) में एक जिनमन्दिर बनवाया था। वह तपोधन राजाओं द्वारा सम्मानित हुए थे। उनके शिष्य रत्नपाल, वनमालि और कान्हर सिंह थे। उक्त कान्हर सिंह के शिष्य प्रस्तुत लालमणि या अरुणमणि थे, जिन्होंने, जहानाबाद नगर (दिल्ली) के पार्श्वनाथ जिनालय में मुगल-अवरंगसाहि (मुगल सम्राट् औरंगजेब के शासनकाल में 1659 ई. में 'अजित जिन-चरित्र' नामक संस्कृत काव्य की रचना की थी। संघपति आसकरण-धर्मावनिपुर (मध्यप्रदेश के सागर जिले का धमनी ग्राम) मध्यकाल : उत्तरार्ध : 317
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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