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पार्श्व-प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी धी। एक अन्य प्रतिमालेख में, जो इसी घराने द्वास 1631 ई. में करायी गयी प्रतिष्ठा का है, 'राजहार-शोभनीक सोनी श्री हीरानन्द द्वारा जहाँगीर को स्वगृह में दावत देने का संकेत प्राप्त होता है।
सबलसिंह मोठिया-नेमिास (नेमा) साह के मुन्न और जहाँगीर के शासनकाल में आगरे के एक अति-वैभवशाली जैन थे। पं. बनारसीदास ने अपने 'अर्थकथालक' में 1613-15 ई. के लगभग के विवरणों में इनका कई बार उल्लेख किया है। इस सेठ के राजसी वैमर और शाही ठाठ का कवि ने जो आँखों देखा वर्णन किया है उससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उस काल के प्रमुख जैन साहूकार मुगलों की राजधानियों में भी कितने धन-सम्पन्न थे। उसके पूर्व 1610 ई. में आगरा के जैन संघ की ओर से तपागच्छाचार्य विजयसेन को जो विज्ञप्ति पत्र भेजा गया था उसमें वहाँ के स श्रावकों और संधपतियों के हस्ताक्षर थे। उस सूची के संघपति सबल ही यह सबलसिंह मोठिया थे।
वर्द्धमान कुँअरजी-1610 ई. के विज्ञप्तिपत्र में उल्लिखित संधपति वर्धमान कुँअरजी ही वह वर्द्धमान-कुँअरजी दलाल थे, जिनके साथ 1618 ई. में बनारसीदासजी आदि ने अहिच्छत्रा और हस्तिनापर की यात्रा की थी।
साह बन्दीदास का नाम भी 1610 ई. के विज्ञप्तिपत्र में लल्लिखित है। यह दूलहसाह के पुत्र, उत्तपयन्द जौहरी के अनुज और पं. बनारसीदास के बहनोई थे और आगरा नगर के पोतोकटरे में रहकर मोली आदि जवाहरात का व्यापार करते
ताराचन्द्र साहु-विज्ञप्तिपत्र के साह ताराचन्द्र परवत-जॉबी के ज्येष्ठ पुत्र और आगरा के धनी श्रावक थे। उनके अनुज कल्यायामल की पुत्री बनारसीदासजी के साथ विवाही थी। उन्होंने 1611 ई. में बनारसीदास को अपने पास बुलाकर कुछ दिन रखा था।
दीवान धन्नाराय-सम्राट अकबर की ओर से महाराज मानसिंह द्वारा अंगाल-बिहार पर अधिकार करने से बंगाल के पठान सुलतान सुलेमान के साले लोदीखों के इन सोधड़गोत्री दीवान धन्नाराय के अधीन पाँच सौ श्रीमाल वैश्य पोतदारी या ख्माने की वसूली का काम करते थे। बनारसीदास के पिता खरगसेन ने भी उनके अधीन चार परगनों की पोतदारी की थी। धन्नाराय ने सम्मेदशिखर के लिए याश संघ भी निकाला था।
ब्रह्म गुलाल-चन्द्रयार्ड के निकटस्थ टापू या टप्पल ग्राम के निवासी पद्यावतपुरवाल जैन थे और चन्द्रवाड के जैनधर्म पोषक चौहान राजा कीर्तिसिंह के दरबारी, कुशल लोककवि और सिद्धहस्त अभिनेता थे। हथिकन्त-अटेर के भट्टारक जमस्यूषण के यह शिष्यों में से थे। उन्होंने 1614 ई. में 'कृपण जगादन-कथा' नामक हास्यरसमयी काव्य ब्रजभाषा में रचा था, अन्य भी कई कृतियों की रचना की थी।
मध्यकाल : उत्तरार्ध :: 13