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________________ राजमला ने 'पंचाध्यायी', 'अध्यात्मकमलमात', 'समयसार की बालबोधटीका'-जैसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रन्थों की तथा वैरादनगर निवासी साह फामन के लिए "लाटीसंहिता' की और आगरा के साहु टोडर के लिए "जम्बूस्वामीयरित' की रचना की थी। साहु टोडर-आर्गलपुर (आगरा) में पासा (पाच) साह नामक प्रसिद्ध धर्मात्मा एवं धनी गर्गगोत्री अग्रवाल जैन थे जो क्रिया में सावधान, चरित्रवान, संयमी और विमलगुणनिधान थे। मूलतः यह भटानियाकोल (अलीगढ़) के निवासी थे और साह रूपचन्द के सुपुत्र थे। इन पासा साह के कुलतिलक सुपुत्र टोडर साह थे। वह बादशाह अकबर के एक उच्चपदस्थ अधिकारी कृष्णमंगल चौधरी के विश्वस्त मन्त्री थे और आगरा की शाही टकसाल के भी अधीक्षक थे। स्वयं सम्राट तक उनकी पहुँच थो । अधभदास, मोहनदास, रूपचन्द (रूपांगद) और लछमनदास नाम के उनके चार सुयोग्य पुत्र थे और धर्मपत्नी का नाम कसुम्भी था। यह सारा परिवार अत्यन्त धार्मिक और विद्यारसिक था। साहु टोडर को तत्कालीन विद्वानों ने सकलगुणभृत, राजमान्य, सुकृति, दयालु भावलीमा नारक्षित परदेशषपाषण में मौन और महाधर्मा कहा है। उन्होंने सजाज्ञा लेकर विपुल द्रव्य व्यय करके मथुरा नगर के प्राचीन जैनतीर्थ का उद्धार किया था, या प्राचीन स्तुपों के जीर्णशीर्ण हो जाने पर 514 नवीन स्तूप निर्माण कराये थे तथा 12 दिक्पाल आदि की स्थापना की थी और बड़े समारोह के साथ 1573 ई. में उनका प्रतिष्ठोत्सव किया था जिसमें चतुर्विध संघ को आपत्रित किया था। उन्होंने आगरा मगर में भी एक भव्य मन्दिर बनवाया था जिसमें 1394 ई. में हमीरी बाई नामक आत्मसाधिका ब्रह्मचारिणी रहती थी। मधरा तीर्थ के जद्धार के उपलक्ष्य में उन्होंने 1575 ई. में पाण्डे गजमल्ल से संस्कृत भाषा में जम्दस्वामीचरित्र' की तथा 1585 ई. में पं. जिनदास से हिन्दी पद्य में उसी चरित्र को स्वतन्त्र रचना करायी थी। उनके ज्येष्ठ पुत्र साहु ऋषभदास या अषिदास भी बड़े धर्मात्मा, ज्ञानधान, अध्यात्म और योगशास्त्र के रसिक थे। वह जिनवरणों से भक्त, दयालु-हृदय, उदारचेता, कापलीला से विरक्त, संयमी श्रायक थे। उनकी प्रेरणा से पण्डित नवविलाल ने आचार्य शुभचन्द्र के 'ज्ञानार्णय' मापक सुप्रसिद्ध जैन योगशास्त्र को संस्कृत टीका लिखायी थी। हर्षचन्द्र सेठ. ड्राग्वर (बागढ़) देश के शाकपाटपुर (सामवाड़ा) के निवासी हूमड़वंशी धर्मात्मा सेठ थे। उन्होंने तथा उनकी पत्नी दुर्गा ने अनन्तव्रत के उद्यापन के उपलक्ष्य में 1576 ई. में भट्टारक गुणचन्द्र से 'अनन्तजिनतपूजा' की रचना करावी थी जो उन्हीं के पूर्वजों द्वारा निर्मापित उस नगर के आदिनाथ-चैत्वालय में लिखकर पूर्ण की गयी थी। उसी जिनालय में निवास करते हुए भट्टारक शुभचन्द्र मे 1551 ई. में अपने प्रसिद्ध 'पाण्डपुराण' की रचना की थी। राजकुमार शिवाभिराम-धन और धार्मिकता से युक्त जैन महाजनों से मध्यकाल : उत्तरार्ध :: 307
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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