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________________ mmmmmmmmaIIRAMIN वाथ बजते थे। औरगजेब ने उनका निषेध किया, किन्तु बिना किसी मनुष्य के माध्यम के ही बाजे फिर भी बजते रहे, अतएव सम्राट् ने अपनी निषेधाज्ञा पस ले ली। अहमदाबाद के शान्तिदास जौहरी को उसने अपना दरबारी भी नियुक्त किया था। कन्नड़ी भाषा को एक विस्दावली के अनुसार औरंगजेब ने कर्णाटक के एक दिगम्बर जैनाचार्य का भी सम्मान किया था, सम्भवतया अपने दक्षिण प्रवास के समय। औरंगजेब भुगलवंश का अन्तिम महान सम्राट था, किन्तु उसकी हिन्दू-विरोधी नीति, शक्की मनोवृत्ति, कुटिल कूटनीति और धार्मिक अनुदारता आदि के परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु के पूर्व ही मुग़ल सत्ता खोखली हो गयी और उसके पश्चात् तो द्रुत वेग से पतनोन्मुख मुई। कुछ ही दशकों में साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और तदनन्तर दिल्ली के मुग़ल बादशाह धनहीन, शक्तिहीन, सत्ताहीन, पराश्रित, नाममात्र के ही बादशाह रहे। देश में अनेक आन्तरिक एवं बाहा कारणों से अवनत्ति और अराजकता कोबार | वियलमहम्मदशाह (1719-48 ई.) ने राज्य के जैन धनिकों के आग्रह पर पशुबध पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा दिया था। इसी बादशाह के राज्यकाल में दिल्ली में पैदवाड़ा का जैनमन्दिर 1741 ई. में बना और 1743 ई. में शाही कमसरियट के अधिकारी आशामल में मस्जिद-खजूर मोहल्ले का पंचायती मन्दिर निर्माण कराया था। मुग़लशासन काल के उल्लेखनीय जैनों में जो प्रमुख हैं उनका विवरण नीचे दिया जा रहा है। राजा भारमल संक्या गोत्र के श्रीमान ज्ञातीय श्रेष्टि थे। इनके पिता रणकाराव सम्राटू अकबर की ओर ले आबू प्रदेश के शासक नियुक्त थे और श्रीपुरपन में निवास करते थे जहाँ से वह अपना शासनकार्य चलाते थे। स्वयं राजा भारमल सम्राट के कृपापात्र धे और उसकी ओर से साँभर के सम्पूर्ण इलाके के शासक थे और नागौर में निवास करते थे। स्वर्ण और जवाहिरात का व्यापार भी इन वणिक्पति के हाथ में था। उनकी अपनी सेना थी और अपने सिक्के चलते थे। उनकी दैनिक आय एक लाख टका (रुपये) थी और स्वयं सम्राट के कोष में वह प्रतिदिन पचास हजार टका देते थे। सम्राट् उनका बहुत सम्मान करते थे और युवराज सलीम (जहाँगीर) तो बहुधा उनसे भेंट करने के लिए नागौर उनके दरबार में जाया करते थे। राजा भारमल धर्मात्मा, उदार और असाम्प्रदायिक मनोवृत्ति के विद्यारसिक श्रीमान थे। धार्मिक कार्यों और दामादि में यह लाखों रुपये खर्च करते थे। काष्ठासंधी भट्टारकीय विद्वान् कविवर पाण्डे राजमल्ल (लगभय 1575-87 ई.) मैं उनकी प्रेरणा से उन्हीं के लिए 'छन्दोविल नामक महत्वपूर्ण पिंगणशास्त्र की रचना की थी। उसमें विविध छन्दों का निरूपण करते हुए कवि ने अपने आश्रयदाता सजा भारमल के प्रताप, यश, वैभव, उदारता आदि का भी सुन्दर परिचय दिया है। इन्ही पाण्डे 3/6 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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