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________________ फ्याप्त अन्तर दृष्टिगोचर होने लगा। वो तो जहाँगीर के शासनकाल में जब वह गुजरात का सूबेदार था तो उसने वहाँ के जैनों की प्रार्थना पर जीवहिंसा-निषेधक कई फरमान जारी किये थे; यद्यपि यह कार्य इसने वहीं के धनी सेठी ने राजकोष .. के लिए विपुल धन लेकर ही किया यताया जाता हैं। यह भी अनुश्रुति है कि आगरा के पण्डित लमारसीदास शाहजहों के मुसाहब थे और उसके साथ बहुधा शतरंज खेला करते थे। अपने अन्तिम वर्षों में जब कवि की चित्तवृत्ति राज-दरबार से विरक्त हुई तो सम्राट् में सम्हें दरबार में उपस्थित न होने की सहर्ष अनुमति दे दी थी। इन पण्डितजी की आध्यात्मिक विद्गोष्ठी इस काल में निरन्तर चली, जिसमें दसियों उच्चकोटि के विद्वान सम्मिलित थे। दिल्ली, लाहौर, मुलतान आदि प्रमुख नमरों के जैन विद्वानों से भी इस सत्संग का सम्पर्क बना रहता था । श्वेताम्बर यति, दिगम्बर महारक, ऐल्लक, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी आदि तो राज्य और राजधानी में विचरते ही रहते थे। शान्तिदास नामक एक नग्न जैनमुनि का भी उस काल में आमरे में आना पाया आता है। इस शासनकाल में स्वयं बनारसीदास, भगवतीदास, पाण्डे हेमराज, पाण्डे रूपचन्द्र, पाण्डे हरिकृष्ण भट्टारक जगभूषण; कदि सालिवाहन, यति लूणसागर, पृथ्वीपाल, बीरदास, कवि सधातमनोहरलाल खरगसेन, रायचन्द्र आदि अनेक जैन विद्वानों में विपुल साहित्य सृजन किया । दिल्ली में स्वयं लालकिले के सामने शाहजहाँ के शासनकाल में ही जैनों का वह प्रसिद्ध लालमन्दिर बना था जो उर्दू-मन्दिर या लश्करी-मन्दिर भी कहलाता था, क्योंकि वह शाही सेना के जैन सैनिकों एवं अन्य राज्यकर्मचारियों की प्रार्थना पर सम्राट् के प्रश्रय में उसकी अनुमतिपूर्वक बना था (उर्दू का अर्थ सेना की छावनी है)। उसी काल में दिल्ली दरवाजे के निकट भी एक जन-मन्दिर का निर्माण हुआ था। औरंगक्षेत्र (1658-1707 ई.) में अपने पूर्वजों की समदर्शिता की नीति की प्रायः पूर्णतया बदल दिया। वह कट्टर मुसलमान था और धर्म के विषय में अत्यन्त असहिष्णु था। उसने मथुरा, वाराणसी आदि के अनेक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिरों को तुझ्याकर उनके स्थान में मस्जिदें बनवा दी थी। किन्तु सामान्य शासनतन्त्र सुदृढ़ था। प्रायः सम्पूर्ण भारतवर्ष पर इसका प्रभुत्व था। उसकी शक्ति और समृद्धि भी सर्थोपरि थी। सम्राज्य के केन्द्रीय भागों में सामान्यतया अराजकता नहीं थी। ताव इस काल में भी उपाध्याय यशोविजय, आनन्दघन, विनविजय, देव ब्रह्मचारी, भैया भगौतीदास, जगतराय, शिरोमणिदास, जीवराज, लक्ष्मीचन्द्र, भट्टारक विश्वभूषण, रखुरेन्द्रभूषण, कवि विनोदीलाल आदि अनेक श्रेष्ठ जैन साहित्यकार हुए। विनोदीलाल ने अपने 'श्रीपाल-चरित्र' (1693 ई.) में लिखा है कि 'इस समय, औरंगशाह बली का राज्य है जिसमें स्वयं अपने पिता को बन्दी बनाकर सिंहासन प्राप्त किया था और चक्रवती के समान समुद्र से समुद्रपर्यन्त अपने राज्य का विस्तार कर लिया। अनुश्रुति है कि दिल्ली के उर्दू-मन्दिर में दोनों समय पूजा एवं आरती के अवसर पर मरकाल : उत्तरार्ध ::305
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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