SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह उसके शासनकाल में हुआ। यहाँ तक कहा आता है कि मायदेवसूरि के शिष्य शीलदेव से प्रभावित होकर इस सम्राटू ने 1577 ई. के लगभग एक जिन-मन्दिर के स्थान पर बनायी गयी मस्जिद धाकर फिर जमन्दिर बनवाने की आशा दे दी थी। इस प्रकार के अन्य उदाहरण भी हैं, यथा सहारनपुर के सिंधियान मन्दिर सम्बन्धी किंवदन्ती। ___ अकबर के पुत्र एवं उत्तराधिकारी मुग़ल सम्राट नूरुद्दीन जहाँगीर (1605-27 ई.) ने सामान्यतया अपने पिता की धार्मिक नीति का अनुसरण किया। अपने आत्मचरित्र 'तुजुके-जहाँगी' के अनुसार उसने राज्याधिकार प्राप्त करते ही घोषणा की थी कि 'येरे जन्म-माल में सारे राज्य में मांसाहार निषिद्ध रहेगा, सप्ताह में एक-एक दिन ऐसे होंगे जिनमें सभी प्रकार के पशुवध का निषेध है, मेरे राज्याभिषेक के दिन, गुरुवार को तथा रविवार को भी कोई मांसाहार नहीं करेगा, क्योंकि उस दिन (रविवार को) सृष्टि का सृजन पूर्ण हुआ था, अताश्य उस दिन किसी भी प्राणी का घात करना अन्याय है। मेरे पूज्य पिता ने ग्यारह वर्षों से अधिक समय तक इन नियमों का पालन किया है, रविवार को तो वह कभी भी मांसाहार नहीं करते थे, अतः मैं भी अपने राज्य में उपर्युक्त दिनों में जीव-हिंसा के निषेध की उद्घोषणा करता हैं। जिनसिंहसरि (यति मानसिंह आदि जैन गरुओं के साथ भी वह घण्टों दार्शनिक चर्चा किया करता था। इन जैनगुरु को उसने 'युगप्रधान' उपाधि भी प्रदान की थी। कालान्तर में जब उन्होंने विद्रोही शाहजादे खुसरू का पक्ष लिया तो जहाँगीर उनसे अत्यन्त रुष्ट हो गया और उनके सम्प्रदाय के व्यक्तियों को अपने राज्य से भी निर्वासित कर दिया था। वैसे, उसके शासनकाल में कई नवीन जैन-मन्दिर भी बने, अपने धर्मोत्सव मनाने और तीर्थयात्रा करने की भी जैनों को स्वतन्त्रता थी। गुजरात आदि प्रान्तों के जैनियों ने उसके प्रान्तीय सूबेदारों से पशुबध-निरोध-विषयक फ़रमान भी जारी कराये थे। साँभर के राजा भारमल और आगरे के हीरानन्द मुकीम-जैसे कई जैन सेठ उसके कृपापात्र थे। ब्रह्मरायमल्ल, बनवारी लाल, विद्याकमल, ब्रह्मगुलाल, गुणसागर, त्रिभुवनकीर्ति, भानुकीति, सुन्दरदास, भगवतीदास, कवि विष्णु, कवि नन्द आदि अनेक जैन गृहस्थ एवं साधु विद्वानों ने निराकुलतापूर्वक साहित्य रचना की थी। कवि जगत् ने तो अपने 'यशोधर-चरित्र' में आगस नगर की सुन्दरता और 'नृपति नूरदीशाहि' (जहाँगीर) के चरित्र एवं प्रताप का तथा उसके सुख-शान्तिपूर्ण राज्य में होनेवाले धर्मकार्यों का अच्छा वर्णन किया है। पण्डित बनारसीदास की विद्वद्गोष्ठी इस काल में आगरा नगर में जम रही थी और यह जैन महाकवि अपनी उदार काव्यधारा द्वारा हिन्दू-मुसलिम एकता को प्रोत्साहन दे रहे थे तथा अध्यात्मरस प्रवाहित कर रहे थे। जहाँगीर के उतराधिकारी शाहजहाँ (1628-58 ई.) के समय में प्रतिक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी और अकबर की उदार धार्मिक सहिष्णुता की नीति में उत्तरोत्तर 304 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिला
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy