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________________ Muswintamam इनपर प्रहार करने के लापता कि काश होते है या उसके शरीर से निकलकर भाग गया। अर्जुनमाली अपने होश में आ गया। सेठ के चरणों में गिर पड़ा और इन्हीं के साथ प्रभुदर्शन करके केलार्थ हुआ 1 दीक्षा लेकर उसने आत्म-कल्याणं किया 1 पाक सुदर्शनसंत चम्पा का प्रसिद्ध धनी रहा बताया जाता है जो एक-पत्मी-व्रती, प्रभाषाशुद्रत का दृढ पालक, परदासविरत एवं स्वदार-सन्तोषी था। उसके मित्र पुरोहित की पत्नी उसपर आसक्त हुई, किन्तु त्रिफल प्रयत्न होने पर उसने वहाँ की एक रानी की सेठ पर डोरे डालने के लिए प्रेरित किया 1 रानी के छलबल भी विफल हए तो सेठ पर झूठे अपवाद लगाकर उस शूली का दण्ड दिये जाने का आदेश दिलाया गया। किन्तु सुदर्शनसेंठ के पुण्य के प्रभाव से शूली भी सिंहासन बन गयी । कुछ ग्रन्थों में इन घटनाओं का सम्बन्ध पाटलिपुत्र नगर से जोड़ा जाता है। वर्तमान परमा के गुलजारबाग मोहल्ले में आज भी धर्मात्मा सुदर्शनसेट का स्मारक है, जहाँ वार्षिक मेला भी लगता हैं 1 एक सुदर्शनसेठे को वैशाली के निकटस्थ वाणिज्य ग्राम का प्रसिद्ध व्यापारी बताया गया है, जिसने भगवान महावीर के समवसरण में कालचक्र के विषय में प्रश्न किये थे और समाधान होने पर मुनि-दीक्षा ले ली थी । सम्भव है कि उपर्युक्त चारों व्यक्ति अभिन्न हौं। एक सुदर्शन सेठ के विभिन्न प्रसंगों को अनुभुतियों में ऐसा रूप दे दिया गया कि वे भिन्न-भिन्न प्रतीत होने लगे। यह भी सम्भव है कि इस नाम के उस काल में एकांधिक व्यक्ति भी है हो । किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि महावीर युग में पूर्वी भारत (वर्तमान बिहार प्रान्त) सदर्शनसेट नाम का एक अनन्य महावीर भक्त. सदाचारी एवं श्रमात्मा श्रावक था, जिसकी प्रसिद्धि विभिन्न साहित्यिक अनुश्रुसियों के माध्यम से आज तक चली आयी है। धना-शालिभद्र धन्ना और शालिभद्र दो विभिन्न व्यक्ति थे। धन्नाजी शालिभद्र के बहनोई एवं परम मित्र थे। दोनों ही धनादय थे, सर्वसुखी थे, और दोनों के ही जीवन में प्रायः एक साथ धार्मिक क्रान्ति आयो। दोनों का संयुक्त नाम जैन परम्परा में ऋद्धि-सिद्धिदायक मंगल स्मरण के रूप में प्रचलित हो गया, यह उनके पारस्परिक सम्बन्ध तथा उनके धार्मिक महत्व का ही सूचक है। राजगह के धनकुबेर गोभद्र की भार्या भद्रा की कक्षि से शालिभद्र का जन्म हुआ था। इनकी बहन का नाम सुभद्रा था जो धनाजी के साथ विवाहित थीं । वयस्क होने पर कुमार शालिभद्र का विवाह अनुपम सुन्दरी यत्तीस कन्याओं के साथ किया गया। पिता की मृत्यु हो गयी थी, माता के अभिभावकान में ही सब कार्य चलता था। सेवकों, सेविकाओं, विविध कर्मचारियों की भीड़ थी। असमानातीत धन-सम्पनि तथा नित्य की आय थी। सुकोमल कुमार संतखने महल के अपने कक्ष से कभी बाहर भी न निकलते और महावीर-युग :::
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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