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________________ .. ... ....... ..... ...... संचालन में व्यय किया जाने लगा। गृहपत्ति आनन्द श्रावक कं इस परिग्रह-परिमाण अत के आदर्श पालन के फलस्वरूप जनपद के सभी निवासी अभावमुक्त हो सुख शान्ति का उपभोग करने लगे। आनन्द ने सर्वत्र आमन्द ही आनन्द का विस्तार कर दिया। और उस महावीर के उपासक. सदगृहस्थ की दिन-दिगन्त यापो कीति गल हाई. सहस्र वर्षों पं अनगिनत धनसम्पन्न जैन श्रावकों को प्रेरणा देती रही है। . पलाशपुर में शय्दालपुन (सदालपुर) जाति से शूद्र और कम से कुम्भकार (कुम्हार था। उसकी पत्नी का नाम गिनीमत्रा थी। वह तीन कोट स्वग का धनी था ! नगर के बाहर मिट्टी के दस्तनों का विक्रय करने की उसकी. पाँच सी बड़ी बड़ी दुकानें चलती थीं। वह मकावलिपुत्र-गोशाल के आजोषिक:सम्प्रदाय का अनुयायी था। भगवान महावीर के दर्शन करके और उपदेश सुनकर वह भी सपत्नीक उनका बुद्ध श्रद्धानी उपासक और प्रती-श्रावक बनाया। इसी प्रकार चम्पापुर में श्रावक कामदेव अपर नाम कुलपति और उसकी भार्या भाविका भद्रा, जिनको हैसियत. अठारह-कोटि मुद्राओं की थी, वाराणसी में चौबीस कोटि मद्राओं का धनी अवयक चूतिनिपिता और उसकी पत्नी. श्राविका श्यामा, काशी में ही श्रावक सुरादेव और उसकी सहर्मिणी धन्या, आलम्भिका नसरी में श्रावक शुल्लशतक जिसको पल्ली अहला नाम्नी थी, काम्पित्य नगर (करिम्परता) में गृहपति कुण्ड-कोलित अपनी भार्या पुण्या सहित, राजगृह का श्रावक महाशतक धर्मपत्नी विजया सहित, और श्रावस्ती के सेठ नन्दिनी पिता एवं सालिहि-पिता, जिनकी पत्नियाँ क्रमशः अश्विनी और फाल्गुणी नाम की थी, महावीर के परम श्रद्धानी. व्रत्ती. श्रावक-श्राविका बने । श्रावस्ती का ही धमाधीश अनावपिण्डक, जिसकी पुत्रवधू विशाखा गवान् बुद्ध की भक्त थी और उनके लिए उसने राजकुमार जेल से स्वर्णमुद्राएँ बिछाकर उसका जेलबन नामक प्रसिद्ध उद्यान खरीदकर उसमें जेतवन विहार बनवाया.था, स्वयं भगवान महावीर का उपासक रहा बताया जाता है। चार अन्य नाम विशेष उल्लेखनीय हैं - सुदर्शन सेठ, धन्नासेठ, श्रेष्टिपुत्र शालिभद्र और ज़म्बुकुमार । .. .. . ": : : :. . . .:::::::::: सुदर्शन सेठ ... . इस नाम के कई व्यक्तियों के उस युग में होने का पता चलता है। एक सुदर्शन सेट सो माधः की राजधानी राजगृह के प्रसिद्ध श्वेष्ठिपुत्र थे. जो भगवान् महाबोर के परम भक्त और बड़े दृट् बद्धानी धर्मात्मा श्रावक ये । अर्जुनमाली नामक एक व्यक्ति यक्ष्यविष्ट होकर नगर के माय भाग में बड़ा उपद्रव मचा रहा था, जिसे देख पाता, मार डालता धा। उधर से सस्ता चलना बन्द हो गया। भगवान का समवसरणा अपया तछ भी उस भूत के भय से लोग यही नहीं जा रहे थे। स्वयं राजा श्रेणिक ने मुनादी करा दी थी। किन्तु दृढनिश्ययी एवं प्रभुभक्त सुदर्शनसेल किली के संके न सके और भगवान के दर्शनार्थ चल दिवे मार्ग में अर्जुनमाली मिला और 36 :: प्रभुर तिहास र पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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