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दण्ड का भागी होगा। प्रायः उसी काल के मेडलादुर्ग के शिलालेखों में भी सम्राट् अकबर द्वारा जैन मुनियों को युगप्रधान पद देने, आषाढ़ी अष्टारिका में अमारि घोषणा करने, वर्ष में सब मिलाकर लगभग डेढ़-पौने दो सौ दिनों में सम्पूर्ण राज्य में पशुवध या जीव-हिंसा बन्द करने, खम्भात की खाड़ी में मछलियों का शिकार बन्द करने, सर्वत्र गोरक्षा का प्रचार करने, शत्रुंजय आदि तीर्थों से राज्यकर उठा लेने आदि का उल्लेख है । पाण्डे राजमल्ल ने 1585 ई. के लगभग लिखा कि धर्म के प्रभाव से सम्राट् अकबर ने जजियाकर बन्द करके यश का उपार्जन किया, हिंसक वचन उसके मुख से भी नहीं निकलते थे, जीवहिंसा से वह सदा दूर रहता था, अपने धर्मराज्य में उसने द्यूतक्रीड़ा और मद्यपान का भी निषेध कर दिया था, क्योंकि मद्यपान से मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वह कुमार्ग में प्रवृत्ति करता है। उसी वर्ष पाण्डे जिनदास ने भी अपने 'जम्बूस्वामीचरित्र' में अकबर की सुनीति और सुराज्य की प्रशंसा की थी। ग्वालियर निवासी कवि परिमल ने 1594 ई. में आमरा में ही रचित अपने 'श्रीपाल चरित्र' में सम्राट् अकबर की प्रशंसा, उसके द्वारा गो-रक्षा के प्रयत्न, आगरा नगर की सुन्दरता, वहाँ जैन विद्वानों का सत्-समागम और उनकी नित्य होनेवाली विद्वद्गोष्ठियों का उल्लेख किया है। विधाहर्षसूरि ने अपने 'अंजना-सुन्दरीरास (1604 ई.) में अकबर द्वारा जैन गुरुओं के प्रभाव से गाय, भैंस, बैल, पशुओं की से मुक्ति, जैन गुरुओं के प्रति आदर प्रदर्शन, दानपुण्य के कार्यों में उत्साह लेना इत्यादि का उल्लेख किया है। महाकवि बनारसीदास ने अपने आत्मचरित में लिखा है कि जब जौनपुर में अपनी किशोरावस्था में उन्होंने सम्राट् अकबर की मृत्यु का समाचार सुन्ना वा तो यह मूर्च्छित होकर गिर पड़े थे और अन्य जनता में भी सर्वत्र बाहि-त्राहि मच गयी थी - यह तथ्य उस सम्राट् की लोकप्रियता का सूचक है। अकबर के मित्र एवं प्रमुख अमात्य अबुलफ़जल ने अपनी प्रसिद्ध 'आईने-अकबरी' में जैनों का और उनके धर्म का विवरण दिया है। इस महाग्रन्थ के निर्माण में उसने जैन विद्वानों का भी सहयोग लिया था। बंगाल आदि के नरेशों की वंशावली उन्हीं की सहायता से संकलित की गयी बतायी जाती है। हीरविजयसूरि आदि कई जैन गुरुओं का उल्लेख भी उसने इस ग्रन्थ में किया है। फतहपुर सीकरी के महलों में अपने जैन गुरुओं के बैठने के लिए सम्राट् ने विशिष्ट जैन कलापूर्ण सुन्दर पाषाणनिर्मित छतरी बनवायी थी जो 'ज्योतिषी की बैठक' कहलाती है। 'आईने अकबरी में अकबर की कुछ उक्तियाँ संकलित हैं जो उसकी मनोवृत्ति की परिचायक हैं, यथा "यह उचित नहीं है कि मनुष्य अपने उदर को पशुओं की कब्र बनाए। मांस के अतिरिक्त बाज पक्षी का कोई अन्य भोज्य न होने पर भी उसे मांसभक्षण का दण्ड अल्पायु के रूप में मिलता है, तब मनुष्यों को जिनका प्राकृतिक भोजन मांस नहीं हैं, इस अपराध का क्या दण्ड नहीं मिलेगा? कसाई, बहेलिये आदि जीव- हिंसा करनेवाले व्यक्ति जब नगर से बाहर रहते
आ प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ