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मध्यकाल : उत्तरार्ध ( लगभग 1556-1756 ई.)
मुगल सम्राट्
यह युग प्रधानतया मुग़ल साम्राज्यकाल था। सन् 1526 ई. में पानीपत के युद्ध में लोदी सुल्तानों के राज्यको करके और दिल्ली एवं अधिकार करके मुग़ल बादशाह बाबर ने मुगल-राज्य की नींव डाली थी। प्रसिद्ध वीर राणा सांगा ने उसे देश से निकाल बाहर करने का असफल प्रयत्न किया था। बाबर अपने अधिकार को व्यवस्थित भी न कर पाया था कि 1530 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। उसका उत्तराधिकारी हुमायूँ भी राज्य को सुगठित न कर पाया और 1539 ई. में शेरशाह सूरी ने उसे भारत से पलायन कर जाने के लिए बाध्य कर दिया। पन्द्रह वर्ष पश्चात् हुमायूँ पुनः आया और पानीपत के दूसरे युद्ध में सूरी सुल्तानों को पराजित करके दिल्ली का बादशाह बना किन्तु एक वर्ष के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गयी। उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी मुग़ल सम्राट् अकबर महानू था। वही मुग़ल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था ।
अकबर महान् (1556-1605 ई.)- प्रायः सर्वथा शून्य से प्रारम्भ करके इस वीर, प्रतापी, महत्त्वाकांक्षी, दृढ-निशायी एवं उदार नरेश ने एक अति विशाल, सुगठित, सुव्यवस्थित, सुशासित, समृद्ध एवं शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण एवं उपभोग किया। महादेश भारतवर्ष के बहुभाग पर उसका एकाधिपत्य था और उसके शासनकाल में देश की बहुमुखी उन्नति हुई। विश्व के सर्वकालीन महान् नरेशों में मुगल सम्राट् अकबर की गणना की जाती है। उसकी सफलता के कारणों में उसकी उदार नीति, न्याय-प्रियता, धार्मिक सहिष्णुता, वीरों और विद्वानों का समादर तथा स्वयं को भारतीय एवं भारतीयों का ही समझना सम्भवतया प्रमुख थे। राजपूत राजाओं में से कई एक के साथ वैवाहिक सम्बन्ध करके और उन्हें अपने शासन-तन्त्र मैं उपयुक्त प्रतिष्ठा प्रदान करके उसने अधिकांश राजपूतों को अपना सहायक बना लिया था । यह महत्त्वाकांक्षी था तो गुण ग्राहक और दूरदर्शी एवं कुशल नीतिज्ञ भी था। युद्धबन्दियों को गुलाम बनाने की प्रथा हिन्दू और जैन तीर्थों पर पूर्ववर्ती
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