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________________ कुलतिलक कामिदेव महाराज के दण्डाधिनाथ काय का पुत्र समण हेगड़े था, जिसके आठ पुत्र थे। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध योजण श्रेष्ठि था। लंगण और रामक्क नाम की उसकी दो पत्नियाँ थीं, जिनमें से प्रथम से रामण श्रेष्ठि और दूसरी से कल्लपसेट्टि नाम के पुत्र उत्पन्न हुए थे। अपनी इन दोनों भार्याओं के साथ क्षेमपुर में रहते हुए वोजण श्रेष्ठ अत्यन्त समृद्ध हो गया और उसने राज्य -श्रेष्ठि की पदवी प्राप्त कर ली तब उसने क्षेमपुर में अनन्तनाथ तीर्थकर का सुन्दर चैत्यालय बनवाया तथा एक नेमीश्वर चैत्यालय बनवाया और अन्य अगणित पुण्य कार्य किये। अन्ततः राजश्रेष्ठि का पद पुत्रों को सौंपकर स्वर्गगामी हुआ । कल्लपश्रेष्ठि ने पिता द्वारा निर्माणित नेमीश्वर चैत्यालय में गोम्मटेश की प्रतिकृति स्थापित की थी । अम्बुवण श्रेष्ठि- पूर्वोक्त योजण श्रेष्ठि के पुत्र रामणसेट्टि का पुत्र तम्मण था, जिसका पुत्र नागसेहि हुआ। सातम और नागम नाम की उसकी दो पत्नियाँ थीं। नागम का पिता नेमणसेष्टि हैवे राज्य का प्रमुख सेठ था जो पाश्र्व जिनालय का निर्माता और चतुर्विधदानं का दाता था। नागम स्वयं बड़ी गुणवती, शीलवती, पतिपरायणा और जिनेन्द्रपद-पूजासक्त थी। उसका पुत्र प्रस्तुत अम्बुवण श्रेष्ठ था जो अपने तक बमश्रेणि रेशिओर देवी नाश की उत्तकी दो धर्मात्मा प्रिय पतियाँ थीं और कोटणसेट्टि एवं मल्लिसेहि नामक दो भाई थे । एक दिन राज्यश्रेष्ठि अम्बुवण अपनी भार्या देवरस के साथ नेमीश्वर- चैत्यालय में गये। भगवान् को स्तवन, वन्दन एवं मुनिजन का पूजा-सत्कार करके उन्होंने मुनिराज अभिनय - समन्तभद्र का धर्मोपदेश सुना और विचार किया कि उक्त जिनालय के सम्मुख मानस्तम्भ बनवाएँगे। पर आकर अपने भाइयों तथा अन्य कुटुम्बजनों की सम्मति लेकर अपने महाराज देवभूपति के सामने विचार प्रकट किया। महाराज ने सहर्ष सहमति दी। अतएव 15650 ई. में इस धर्मात्मा राज्य सेठ ने उक्त स्थान में कांस्य धातु का बड़ा उत्तुंग सुन्दर एवं कलापूर्ण मानस्तम्भ बनवाकर महाराज तथा समस्त संघ की उपस्थिति में बड़े समारोहपूर्वक प्रतिष्ठापित किया। इसी बीच उसकी पत्नी देवरस ने पद्मरसि एवं देवरसि नामक जुड़वा पुत्रियों को जन्म दिया तो सेठ ने उन कन्याओं की ऊँचाई जितना ठोस स्वर्ण कलश उक्त मानस्तम्भ पर चढ़ाया । इस प्रकार सदूधर्म के छत्र दण्ड जैसा चार जिनबिम्बों से युक्त वह सुन्दर मानस्तम्भ पृथ्वी पर शोभायमान हुआ । 298 : प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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