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और जैन मुरुओं के लोकोपकारी कायों के उल्लेखों से भरे पड़े हैं। 'जीवन्धर-चरित' के कर्ता भास्कर (1424 ई.), "ज्ञानचन्द्राभ्युदय आदि के कता कल्याणकाति (1499 ई.), श्रेणिकचरित्र' के कर्ता जिनदेव (1444 ई.), 'द्वादशानुप्रेक्षा' के कतई विजय मानवादी विशाल मिश्ररहन आदि उस काल के जतलेखनीय विद्वान हैं। महाकवि कालिदास का सर्वप्रसिद्ध टीकाकार एवं विश्ववंशशसुधार्णव' का रचयिता जैन विद्वान् पल्लिनाथ-सूरि-कोलाचल इसी सम्राट् वीरप्रताप-प्रौद-देवराय का
आश्रित था। इस नरेश की मृत्यु की लिपि भी 1446 ई. के श्रवणबेलगोल के दो जैन शिलालेखों में अंकित है।
उसके उपरान्त तीन अपेक्षाकृत निर्बल शासक हुए। 1496 ई. में वंशपरिवातन्त हुआ और संगमवंशियों के स्थान में सालुववंशी राजा हुए।
वैधप दण्डाधिनायक -विजयनगर के प्रारम्भिक नरेशों के सर्थप्रसिद्ध जैन मन्त्री कैच, बैचप वा बैचए-माधक अपरनाम माधवराय को 1985 ई. के एक शिलालेख में कुलक्रमागत-मन्त्री लिखा है। सम्भव है कि वह होयसल नरेशों के किसी जैन दण्डनायक के वंश में उत्पन्न हुआ हो । उसका पिता शान्ति-जिनेश का भक्त, सुजनों का मित्र, चितुर बेचय-नायक था, जो सम्भवतया संगम के पुरों के स्वातन्त्र्यप्राप्ति हित किये गये संघर्ष में उनका विश्वसनीय सेनानायक और मन्त्री था, हरिहर-बुक्का द्वारा विजयनगर राज्य की स्थापना में उनका सहायक था और शायद उसके उपरान्त भी हरिहर प्रथम के समय अपनी मृत्यु तक राज्य सेवा में रहा । तदुपरान्त उसका बोग्य सुपुत्र प्रस्तुत वैद्यप-माधव हरिहर प्रथम का दण्डनायक हुआ बुक्काराय प्रथम के समय में वह दण्डाधिनायक (प्रधान सेनापति) और राजमन्त्री रहा। उसके वीर पुत्र समय, इरुप और बुक्कन भी उसके सामने ही राज्य की सेवा मैं दण्डनायकों के रूप में नियुक्त हो गये थे। हरिहर द्वितीय का तो वैश्य महाप्रधान (प्रधान मन्त्री) एवं महादण्डाधिनाथ (प्रधान सेनापति था। वह प्रभाव, उत्साह और मन्त्र इन शक्तित्रय से समन्धित था और महाराज हरिहर का तो समरांगण में तीसरा हाथ (तृतीय याहु) था। इस परम बीर ने, विशेषकर कोंकणदेश की विजय में अद्भुत परक्रम दिखाया था। मूलतः बैय कुन्तल बनवासि देश स्थित जैनधर्म के गढ़ कम्पण-उद्धरे का निवासी था। इस अप्रतिम साहसो वीर, विचक्षण राजनीतिज्ञ और धर्मात्मा ने 1480 ई. की वैशाख शुक्ल त्रयोदशी भौमवार के दिन जिनेन्द्र के चरणकमलों का आश्रय लेकर समाधिविधान से स्वर्ग प्राप्त किया था। मन्त्रीश्वर बैच अपने साहस, वीरता, उदारता, विद्वत्ता और सर्वानुमोदित नीति के लिए प्रसिद्ध हुआ।
इरुग दण्डनाथ-महाप्रधान बैंच-माधव का द्वितीय पुत्र था। उसका ज्येष्ठ भाई मंगप और अनुज बुक्कन भी राज्य के वीर दण्डनायक एवं मन्त्री थे, किन्तु
मग तीनों भाइयों में सर्वाधिक योग्य था और पिता की मृत्यु के उपरान्त वही हरिहर द्वितीय का महाप्रधान हुआ। उसने 1367 ई. में चलूमल्लूर में एक जिनमन्दिर
288 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं