SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दोनों ही धर्मों का समान रूप से मान था। प्रारम्भ में ही हरिहर और बक्का ने समदर्शिता की जो नीति निर्धारित कर दी थी उसका प्रभाव उनके वंशजों पर भी हुआ और फलस्वरूप इस वंश के कई राजाओं, रानियों, राजकुमारों, सामन्त-सरदारों, राजकर्मचारियों तथा प्रजाजन ने भी जैनधर्म को उन्मुक्त प्रश्रय एवं पोषण प्रदान किया और अनेक जैन राजपुरुषों, मन्त्रियों, सेनापतियों एवं वीर योद्धाओं, श्रेष्ठियों और व्यापारियों, राज्यकर्मचारियों और भव्यों (श्रावकों), साधु-सन्तों और साहित्यकारों ने उक्त राज्य के सर्वतोमुखी उत्कर्ष तथा उसकी शक्ति और समृद्धि के संवर्द्धन में प्रशंसनीय योग दिया। स्वयं राजधानी विजयनगर हिम्पा, प्राचीन पया धर्तमान खंडहरों में कहीं के जैनमन्दिर ही सर्वप्राचीन हैं। वे नगर के सर्वश्रेष्ठ केन्द्रीय स्थान में स्थित हैं और उनमें से अनेक तो ऐसे हैं जो विजयनगर की स्थापना के पूर्व भी वहाँ विद्यमान थे। कला और शिल्प की दृष्टि से भी विजयनगर के जैनमन्दिर अत्युत्तम हैं। स्वभावतः, मध्यकालीन भारतीय राजनीति की अद्वितीय सृष्टि, विजयनगर-साम्राज्य-युग ने इतिहास को अनेक उल्लेखनीय जैन विभूतियाँ भी प्रदान हरिहर प्रथम 1346-65 ई.)-विजयनगर के इस प्रथम नरेश के राज्यकाल में, 1953 ई., में समचन्द्रमलधारि के गृहस्थ-शिष्य नालप्रभु गोपगोड के पुत्र कामगौड और उसकी पत्नी ने हिरेआवलि में पंचनमस्कार-महोत्सव किया था। इस लेख में राजा का उल्लेख महामण्डलेश्वर हरियप्प-ओडेयर नाम से किया था। एक अन्य लेख के अनुसार इस महामण्डलेश्वर, शत्रुराजाओं के नाशक, हिन्दुव-राय सुरताल (सुरन्तान) वीर-हरियप्प-ओडेयर के राज्य में, 1854 ई. में नालप्रभु कामगौड के पौत्र और सिरियममौड़ के सुपुत्र मालगौड़ ने संन्यास-विधि से मरण किया था और उसकी भार्या चेन्नके ने भी सहगमन किया था। हेमचन्द्र भट्टारक के शिष्य तेलुग आदिदेव और ललितकीर्ति भट्टारक ने 1355 में कनकगिरि पर विजयदेव की प्रतिमा स्थापित की थी। इसी वर्ष भोगराज नामक एक प्रतिष्ठित रामपुरुष ने रायदुर्ग में अनन्त-जिनालय की स्थापना करके अपने गुरु नन्दिसंघ-सरस्वतीमच्छ-बलात्कारगण के मुनि अमरकीर्ति के शिष्य माधनन्दिसिद्धान्त को समर्पित कर दिया था। इसी नरेश के शासनकाल में 15162 ई. में जब संगमेश्वर-कुमार बीरबुक्कमहाराय के अधीन राजकुमार विरुपाक्ष-ओडेयर मलेराज्य-प्रान्त का शासक था और अपनी प्रान्तीय राजधानी अरग में निवास करता था तो हेदूरनाड़ में स्थित तडताल के प्राचीन पार्श्व-जिनालय की सीमा को लेकर जैनों और वैषणवों में विवाद हुआ। अपने सभाभवन में उक्त राजकुमार ने महाप्रधान नामन्न, प्रान्त प्रमुख सामन्त-सरदारों, जन-नेताओं और जैन एवं वैष्णव मुखियाओं के समक्ष सर्वसम्मति से जैनों के पक्ष को न्यायपूर्ण घोषित किया, प्राचीन शासनों में जो सीमाएँ निर्धारित की गयी थी वे ही मान्य को गयों और एक शिलालेख में ओंकेत कश दी गयीं | हरिहर का अनुज बुक्काराय इस समय संयुक्त शासक या वायसराय 282 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy