________________
इच्छासर नाम का गाँव भी बसाया। वह बड़ा उदार, दयालु और धर्मात्मा था। शत्रुजयतीर्थ की उसने ससंघ यात्रा की थी और जैनधर्म की प्रभावना के अनेक कार्य किये थे। उसने प्रभूत मान, प्रतिष्ठा और दीर्घ आयु प्राप्त की थी। बच्छराज के वंशज ही बच्छावत कहलाये और उसके पुत्र करमसिंह और वरसिंह, पौत्र नगराज, प्रपौत्र संग्राम आदि बीका के उत्तराधिकारियों के दीवान होते रहे। यह पद इस वंश में मौरूसी - जैसा हो गया था। बच्छराज का पुत्र वरसिंह और पौत्र नगराज भारी योद्धा और कुशल सैन्य संचालक थे। बीकानेर में बच्छराज ने स्वयं नगर के मुख्य बाजार में 1504 ई. में चिन्तामणिजी का मन्दिर बनवाया था, जिसमें आदिनाथ- चतुर्विंशति भातु प्रतिमा मण्डौर से लाकर स्थापित की थी और 1513 ई. में नेमिनाथ मन्दिर बनवाया था। सन् 1521, 1526 आदि में भी उस नगर में जिनमन्दिर बने । बच्छराज के पूर्वज सगर, बोहित्य, श्रीकरण, समघर, तेजपाल, बील्हा, कडुवा और जेसल भी वीर और उसी प्रकार के नये । कर्मसिंह मे करमीसीसर गाँव बसाया, एक जिनालय बनवाया, यात्रासंघ चलाया और 1525 ई. के दुर्भिक्ष में तीन लाख व्यय करके नगराज ने सदावर्त बाँटा तथा शत्रुंजय का प्रबन्ध अपने हाथ में लिया। उसने चम्पानेर के सुल्तान मुजफ्फर को भी प्रसन्न किया
था 1
मारवाड़ के मोहनोत भण्डारी आदि कई प्रसिद्ध जैनवंशों का उदय भी इसी समय के लगभग हुआ और उन्होंने राज्य में प्रतिष्ठित पदों पर कार्य करके उसके उत्कर्ष में भारी योग दिया।
ढुण्ढाहड़ ( जयपुर ) प्रदेश में भी जैनधर्म फल-फूल रहा था। मालपुरा के आदिनाथ मन्दिर में 1454 ई. को भट्टारक भुवनकीर्ति के उपदेश से हुमडातीय श्रेष्ठ खेता एवं उसके परिवार द्वारा प्रतिष्ठापित धातु की चौबीसी प्रतिमा हैं। 1491 ई. में भट्टारक रत्नकीर्ति के उपदेश से गंगवालगोत्री खण्डेलवाल संघ जालम के द्वारा प्रतिष्ठापित ताँबे का यन्त्र है। 1512 ई. में भट्टारक धर्मचन्द्र के शिष्य मुनि मुवन भूषण, ब्रह्म धारणा एवं पं. बस्ता द्वारा प्रतिष्ठित तीन धातुमयी चौबीसी प्रतिमाएँ हैं। एक आदिनाथ चौबीसी 1466 ई. की है, एक श्रेयांस चौबीसी 1497 की है, इत्यादि। इस प्रदेश के अन्य नगरों में भी उस काल की प्रतिमाएँ पायी जाती हैं ।
राजस्थान के डूंगरपुर-बाँसवाड़ा, बूँदी, नागौर आदि अन्य क्षेत्रों में भी जैनीजन निवास करते थे।
विजयनगर साम्राज्य
Fe recitra मध्यकालीन हिन्दू साम्राज्य के संस्थापक संगम नामक एक छोटे से यदुवंशी राजपूत सरदार के पाँच वीर पुत्र थे। अन्तिम होयसल नरेश वीर
280 : प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ