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इस जीर्णोद्धार के हेतु अहमदाबाद से 3 और चित्तौड़ से 19 सूत्रधार (मिस्त्री) बुलाये गये थे। राणा के दरबार में उसके इस प्रधान का अत्यधिक मान था।
आशाशाह और उसकी जननी-मेवाड़ के इतिहास में इन कर्तव्यनिष्ठ एवं स्वामिभक्त माता-पुत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। रत्नसिंह की मृत्यु के उपरान्त उसका छोटा भाई विक्रमाजीत गद्दी पर बैठा, किन्तु वह अयोग्य था और उसका छोटा भाई उदयसिंह नन्हा बालक था। अतएव राज्य के सरदारों ने विक्रमाजीत को गद्दी से हटाकर दासीपुत्र बनवीर को राणा बना दिया। यह बड़ा दुराचारी और निर्दयी था। उसने विक्रमाजीत की हत्या कर दी और रात्रि में उदयसिंह की भी हत्या करने के लिए महल में पहुंचा। बालक राणा की परम स्वामिभक्त पन्ना धाय ने अपनी तुरतबुद्धि द्वारा स्वयं अपने पुत्र का बलिदान देकर छल से उदयसिंह की प्राग-रक्षा की और रातोरात विश्वस्त सेवकों के साथ राजकुमार को लेकर चित्तौड़ से बाहर हो गयी । आश्य की खोज में राज्य के अनेक सामन्त-सरदारों के पास भटकी, किन्तु अत्याचारी बनधार के भय से कोई भी तैयार नहीं हुआ। अन्ततः यह कुम्भलमेर पहुँची जहाँ का दुर्गपाल आशाशाह देपरा नामक जैनी था। प्रारम्भ में यह भी बालक राणा को शरण देकर विपत्तिमोल लेने में हिचकिचाया, किन्तु उसकी वीर माता ने कुपित होकर उसे अत्यन्त धिक्कास और भूखी सिंहनी की भांति अपने भीरु पुत्र का प्राणान्त करने के लिए झपटी। आशाशाह गदगद होकर तीर जननी के चरणों में पिर पड़ा और कहा कि "भाँ! तुम्हारा पुत्र होकर भी क्या मैं यह भोसता कर सकता था? क्या सिंहनीपुत्र शृगाल के भय से अपने कर्तव्य से विमुख हो सकता है और प्राणों के मोह में पड़कर शरणागत की रक्षा से मुँह मोड़ सकता है: वीर माता हर्ष-विभोर हो पत्र की अलेषा लेने लगी, यही माता जो क्षण-भर पूर्व पुत्र को कायर एवं कर्तव्य-विमुख समझ उसके प्राण लेने पर उतारू हो गयी थी। आशाशा ने कुमार को अपना भतीजा कहकर प्रसिद्ध किया और अथक प्रयास करके कुछ कालोपरान्त अन्य सामन्तों की सहायता से उदयसिंह को चित्तौड़ के सिंहासन पर आसीन कर दिया। इस जैन वीर माता और उसके पुत्र बीर आशाशाह ने राणावंश की इस प्रकार रक्षा करके मेवाड़ राज्य पर प्रशंसनीय उपकार किया था।
दीवान बच्छराज जालोर के चौहान नरेश युद्धवीर सामन्तसिंह देवड़ा की सन्तति में उत्पन्न मारवाड़ के जेसलजी बोशा का पुत्र बच्छराज बा चतुर, साहसी और महत्वाकांशी था। कुछ ही समय में वह मण्डोर के राब रिधमल का दीवान वन गया। रिधमल की हत्या कर दिये जाने पर उसने उसके ज्येष्ठ पुत्र राव जोधा को बुलाकर गद्दी पर बैठाया और उसका भी दीवान रहा जोधा के पुत्र बीका ने अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया। उसने बीकानेर नगर 1468 ई. में बसाया और उसे ही अपनी राजधानी बनाया। बच्छराज राव बीका का प्रमुख परामर्शदाता और दीधाम था। अपना परिवार भी बह बीकानेर ही ले आया था। उसने बीकानेर के निकट
मध्यकाल : पूर्वाध ::18