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________________ के भक्त जैसवालकुलभूषण उल्लासाहु की द्विलीय पल्ली भावश्री से उत्पन्न उसके वार पुत्रों में ज्योष्ट, यह उदार, दानी, धर्मात्मा धनकुटोर पधसिंह थे। उनकी पत्नी का नाम चीस था और बालू, डालू, दीवड़ एवं मदनपाल नाम के चार पुत्र थे जो चारों विवाहित थे और उनके पनादि थे। इस भरेपूरे परिवार के मुखिया सेठ पयसिंह ने लक्ष्मी के बिजली-जैसे चंचल स्वभावको चिन्ता कर उसका सामना करने का वाल्प किया। अतएव उस देव-शास्त्र-गुरु-भक्त धर्मात्मा ने चौबीस जिनालयों का निर्माण कराया और विभिन्न ग्रन्थों की कुल मिलाकर एक लाख प्रतियों लिखवायी तथा अन्य धर्मकार्य किये थे। राजस्थान मेवाड़ राज्य राजस्थान में कई छोटे-छोटे रजवाड़े यत्र-तत्र थे, किन्तु वे अत्यन्त गौण थे। प्रमुख राज्य मेवाड़ के राणाओं का ही था। दसवीं शती के राजा शक्तिसिंह की दसवीं पीढ़ी में विजयसिंह (1108-16 ई.) एक प्रसिद्ध राजा था। उसके पुत्र अरिसिंह का प्रपौत्र रणसिंह (कण) था जिसके पुत्र क्षेमसिंह के वंशज रावल कहलाते थे और मूल राजधानी नागहृद (नागदा) में राज्य करते थे। रणसिंह के एक अन्य पुत्र राहप के वंशजों ने सिसौद में राज्य किया और राणा कहलाये। क्षेमसिंह का पुत्र सबल सामन्तसिंह पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी का समकालीन था। तदनन्तर जैत्रसिंह या जैतल (1213-52 ई.) ने चित्तौड़ पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाया । उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी तेजसिंह 126) ई. के लगभग मेवाड़ का शासक था, जिसकी रानी जयतल्लदेवी धी। राणी जयतल्लदेवी और वीरकेसरी समरसिंह-सणा लेजसिंह की पटरानी जयतल्तदेवी परम जिनभक्त थी। उसने चित्तौड़ दुर्ग के भीतर, 1205 ई. के लगभग, श्याप-पार्श्वनाथ का सुन्दर जिनालय यमयाया था तथा कई अन्य मन्दिर, मूर्तियाँ आदि भी प्रतिष्टित करायी थीं। उसके मातृभक्त, धर्मात्मा पुत्र चीरकेसरी सबल समरसिंह ने आँचलगच्छ के मुनि अमितसिंहसूरि के उपदेश से अपने राज्य में जीवहिंसा बन्द करा दी थी। साह रत्नसिंह-बिसौड़ दुर्ग के भंगार-चयरी मामय मन्दिर के निकट प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार यहाँ 1277 ई. की अक्षयतृतीया के दिन साह प्रहलादन के पुत्र साह रत्नसिंह ने शान्तिनाथ चैत्वालय का निर्माण कराया था, जिसमें साह समाधा के पुत्र साह महण की भार्या सोहिणी की पुत्री कुमरल नाम्नी श्राविका ने अपनी मातामह की स्मृति में एक देवकुलिका स्थापित की थी। रणथम्भौर का राणा इम्मीरदेव-पृथ्वीराज चौहान का वंशज धीर शिरोमणि यह राणा नन्दिसंघ के 'भष्ट्रारक धर्मचन्द्र का भक्त था। अलाउद्दीन खिलजी के भीषण आक्रमणों का उसने डटकर मुकाबला किया था, अन्त में स्वराज्य की रक्षा में 2i4 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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