SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के राजा मरेन्द्रदेव (हूंगरसिंह) के राज्य में 1453 ई. की माघ शुक्ल अष्टमी के दिन श्री महावीर - प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी । साहु लापू-उसी नरेश के राज्य में 1453 ई. की माघ शुक्ल दशमी रविवार के दिन (पूर्वोक्त प्रतिष्ठा से दो दिन पश्चात् हो), खण्डेलवाल जातीय बाकलीवालगोत्री सेठ लापू ने अपने पुत्रों साल्हा और पाल्हा तथा अपनी भार्या लक्ष्मणा और पुत्रवधुओं सुहागिनी एवं गौरी सहित अनेक जिन-प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करायी थी। उनमें की विभिन्न तीर्थंकरों की 11 लेखांकित श्वेत संगमरमर की अखण्डित मनोज्ञ प्रतिमाएँ 1903 ई. में टोंक (राजस्थान) के नवाब के महल के पास खुदाई में अकस्मात् प्राप्त हुई थीं। उनपर महाराज दूगरदेव का नाम भी अंकित है और काष्ठासंघा हमकातिदेव के शिष्य विमलकीर्तिदेव का भी, जिनके उपदेश से सम्भवतया वह प्रतिष्ठा हुई थी । महापण्डित रहधू- इस काल के सर्वमहान् साहित्यकार, महान् शास्त्रज्ञ. प्रतिष्ठाचार्य, अपभ्रंश के सुकवि और लगभग 30 ग्रन्थों के रचयिता रइधू थे जो पद्मावती-पुरवाल संघाधिप देवराज के पौत्र और बुधजनकुल- आनन्दन संघवी हरिसिंह के सुपुत्र थे तथा ग्वालियर-पट्ट के काष्ठासंघी भट्टारकों की आम्नाय के पण्डित थे । भट्टारक गुणकीर्ति, यशःकीर्ति, मलयकीर्ति आदि उनका बड़ा मान करते थे। श्रीपाल अचारी रद्दधू के गुरु थे। रइधू का रचनाकाल लगभग 1423-1458 ई. महाराज डूंगरसिंह के प्रायः पूरे शासनकाल को व्याप्त करता है। इन पण्डितप्रवर के प्रश्रयदाता एवं प्रशंसक धनी आवकों में ग्वालियर व आसपास प्रदेश के सहलसा, मुल्लणसाहु, अग्रवालवंशी हरसीसाह और उनके पुत्र करमसिंह, एडिलमोत्री अग्रवाल महाभव्य खेमा, राजा द्वारा सम्मानित अग्रवालवंशी बाहडसाहु, हिसार निवासी गोयलगोत्री अग्रवाल साहु जाल्हे के पुत्र सहजपाल, कुमारपाल आदि संघपति काला (कौल), चन्द्रवाड के राज्यसे कुन्युदास इत्यादि थे, जिनकी प्रेरणा पर कवि ने विभिन्न ग्रन्थों की रचना की तथा प्रतिष्ठाएँ आदि करायी थीं। ब्रह्मखेल्हा-अग्रवाल- वंशावतंस, संसार-देह-भोगों से उदासीन, धर्मध्यान से सन्तृप्त, शास्त्रों के अर्थरूपी रत्नसमूह से भूषित, यशःकीर्ति गुरु के विनत शिष्य ब्रह्मचारी प्रतिमाधारी खेल्हा आवक ने ग्वालियर में सरसिंह के समय में ही तीर्थकर चन्द्रप्रभु की एक विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठित करावी थी। साहु कमलसिंह - साहु खेमसिंह के पुत्र थे। इन्होंने दुर्गति की नाशक, मिथ्यात्वरूप गिरीन्द्र को नष्ट करने के लिए यज्ञ के समान और रोग-शोक आदि दुखों की विनाशक भगवन्त आदिनाथ की ग्यारह हाथ ऊँची विशाल प्रतिमा इसी काल में ग्वालियर में प्रतिष्ठित करवायी थी। साहु पद्मसिंह-ग्वालियर के तोमर नरेश कीर्तिसिंह के समय में काष्ठासंघी भट्टारक यशःकीर्ति के प्रशिष्य और मलयकीर्ति के शिष्य भट्टारक गुणभद्र की आम्नाय मध्यकाल पूर्वार्ध : 273
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy