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________________ के चार बड़े भाई और हंसराज नाम का एक छोटा भाई था। मन्त्रीराज कुशराज की रही, लक्षणश्री और कौशस नामक तीन पत्नियाँ थी जो सती-साधी, गुणवत्ती, जिनपूजानुरक्त धर्मास्मा महिलाएँ थीं। रल्हो से शराज के कल्याणसिंह नाम का सन्त सापायाशील और जिनझुल परमासाना में सदैव तत्पर सुपुत्र था। कुशराज ने ग्वालियर में चन्द्रप्रभ-जिनेन्द्र का भव्य एवं विशाल जिनालय बनवाया था और उसका प्रतिष्ठा महोत्सक बड़े समारोष्ट के साथ सम्पन्न किया था। संस्कृत भाषा के विद्वान सुकवि, जैन धर्मानुयायी पद्यनाम कायस्थ से इन मन्त्रीवर ने 'यशोधरचरित्र' अपरनाम 'दयासुन्दर-विधान' नामक तुन्दर काव्य की स्थना कराधी थी, जिसे कवि ने ग्वालियर के तत्कालीन भट्टारक गुणकीर्ति के उपदेश से पूर्वसूत्रानुसार रचा था। उक्त काथ्य की सन्तोष जैसवाल, विजयसिंह, पृथ्वीराज आदि साहित्य-रसिकों ने प्रशंसा की थी। महाराज वीरमदेव के समय में ही, 1410 ई. में ग्वालियर के निकट चैतनाथ में एक जिनमन्दिर-प्रतिष्ठा हुई थी। महाराज दूंगरसिंह-कीतिसिंह...ग्वालियर के किले के भीतर दीवारों पर उत्कीर्ण विशालकाय जिन-प्रतिमाओं के निर्माण का श्रेय इन्हीं दोनों तोमर नरेशों को है। इनमें से आदिनाथ की प्रतिमा सो 'बावनगजा' कहलाती है और लगभग 50 फुट ऊँची है। यह निर्माणकार्य महाराज इंगरसिंह के समय में प्रारम्भ हुआ था और उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी महाराज कीतिसिंह के समय में पूरा हुआ। लगभग 33 वर्ष इन मूर्तियों के निर्माण में लगे। इसी से उक्त दोनों नरेशों का जैनधर्म के प्रति अनुराग स्पष्ट है। दूंगरसिंह के शासनकाल में अन्य अनेक जिनबिम्ब-प्रतिष्ठाएँ हुई थी, जिनमें से 1440 और 1453 ई. के तो कई अभिलेख भी उपलब्ध हैं। इन नरेशों के शासनकाल में ग्वालियर जैविधा का प्रसिद्ध केन्द्र रहा था, अनेक ग्रन्थ रचे मवे-अनेक की प्रतिलिपियों हई। महाराज इंगरसिंह की पहरानी बाँदा भी बड़ी धर्मात्मा और जिनभक्त थी और पुत्र कीर्तिसिंह भी। संघपति काला मुगलगोत्री अग्रवाल जैन साहु आत्मा का पुत्र साहु भोपा था, जिसकी भार्या नाम्ही थी और पाँच पुत्र क्षेमसी, महाराजा, असराज, धनपाल और पास्का नाम के थे। क्षेमसी की भार्या नीरादेवी थी तथा दो पुत्र काला (कौल) और मोजराज थे। काला की प्रथम पत्नी सरस्वती से उसका पुत्र मल्लिदास और दूसरी पत्नी साध्वीसरा से पुत्र चन्द्रपाल था 1 भोजराज का पुत्र पूर्णपाल था। अपने इन समस्त परिजनों के साथ संघाधिपति साह काला में गोपाचलदुर्ग (ग्वालियर) में पहाराजाधिराज डूंगरसिंह के राज्य में 1440 ई. में स्यगुरु भट्टारक पर्श कीर्तिदेव के उपदेश से भगवान आदिनाथ का मन्दिर निर्माण कराके प्रतिष्ठाचार्य पण्डित रइधू से उसकी प्रतिष्ठा करायी थी। श्रीचन्द-हरिचन्द-गंगोत्री अग्रवाल साह श्रीचन्द, उसके भाई हरिचन्द, पुत्र शेषा तथा अन्य परिजनों ने भट्टारक चिमलकीर्ति के उपदेश से गोपगिरि (ग्वालियर) 272 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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