________________
और मुंगे (विट्रम) की अनगिनत प्रतिमाएँ बनवाकर प्रतिष्ठित करायी थीं।
इटावा जिले के करहल मगर में भी एक चौहान सामन्त राजा भोजराज का राज्य था, जिसके मन्त्री यदुवंशी अमरसिंह जैनधर्म के सम्पालक थे। उन्होंने 141 ई. में वहाँ रत्नपग्री जिनबिम्ब निर्माण कराके महत् प्रतिष्ठोत्सव किया था। अमरसिंह की पत्नी कमलश्री और नन्दन, सोणिम एवं लोणा नाम के तीन सुपुत्र तथा चार माई थे जो सभी धाम के वासी होणास विशेष रूप से अपने धन का जिनयात्रा, प्रतिष्ठा, विधान-उधापन आदि प्रशस्त कार्यों में सदुपयोग करते थे। वह 'मल्लिनाथ-चरित्र के कर्ता जयमित्रहल्ले के प्रशंसक थे और 1422 ई, उन्होंने कवि असाल से अपने भाई सोणिग के लिए भोजराज के पुत्र संसारचन्द (पृथ्वीसिंह) के शासनकाल में 'पाश्र्वनाथचरित' की स्थना करायी थी। ग्वालियर के तोमर नरेश
फीरोज सुग़लुक के शासन के अन्तिम वर्षों में उद्धरणदेव तोमर ने ग्वालियर पर अधिकार करके अपना राज्य स्थापित किया था। उसके प्रतापी पुत्र वीरमदेव या वीरसिंह तोमर (1895-1422 ई.) ने राज्य को सुसंगठित करके स्वतन्त्र और शक्तिशाली बनाया। तदनन्तर गणपतिदेव (1422-24 ई.), डूंगरसिंह (1424-60 ई.), कीर्तिसिंह या करणसिंह (1460-79 ई.), मानसिंह (1479-1518 ई.) और विक्रमादित्य नामक राजा क्रमश: हुए। ये राजे धार्मिक, उदार, सहिष्णु और साहित्य एवं कला के प्रेमी थे। ग्वालियर प्रदेश में कम्पधात राजाओं के समय से ही जैनधर्म का प्राधान्य चला आता था। बीच के अन्तराल में मुसलमानी शासनकाल अन्धकार और अशान्ति का युग था ! सोमर राज्य की स्थापना के साथ पुनः पूर्ववत् स्थिति हो गयी। ग्वालियर नगर में काष्ठासंघ के दिगम्बर मट्टारकों का प्रधान पट्ट इस काल में रहा और वहाँ के अधिकांश श्रावक उसी आम्नाव के थे। यो मन्दिसंघ का भी एक पट्ट वहीं स्थापित हुआ था। उपर्युक्त पट्टों से सम्बन्धित जैन मुनियों ने राज्य के सांस्कृतिक उत्कर्ष साधन में प्रभूत योग दिया। इनमें से यश कीर्ति प्रभृति कई मुनि तो भारी विद्वान् और साहित्यकार थे और महाकवि रझ्धू, पपनाम कायस्थ, जयमित्रहल इत्यादि कई जैन गहस्य विद्वान तथा सुकवि भी हुए। शराज-जैसे राजमन्त्री और पासिंह खेला, कमलसिंह आदि अनेक धनाहय धर्मात्मा सेठ हुए। राज्य में अनेक पुराने जिनमन्दिरों का जीर्णोद्धार हुआ और कितने ही नवीन निर्मित हुए । अनेक पुरातन एवं नवीन ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ भी बड़ी संख्या में करायी गयीं।
मन्त्रीश्वर कुशराज-जैसवाल-कुलभूषण जैन धर्मानुयायी थे और ग्यालियर के तोमर नरेश वीरमदेव के महामात्य थे तथा उसकी राजनीतिक सफलता एवं शक्ति के प्रमुख साधक थे। वह साह भुल्लण और उदितादेवी के पौत्र तथा सेठ जैनपाल और उनकी भार्या लोणाव के सुपुत्र थे। हंसराज, सैराज, रैराज और भयराज नाम
पध्यकाल : दार्थ :: 272