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________________ इस समय तक सम्भवतया रायवाहिय प्रमुख राजधानी रही और चन्द्रवाड उपराजधानी, तदनन्तर चन्द्रवाड ही मुख्य राजधानी हो गयी। कहा जाता है इस नगर (चन्द्रवाड) में 1 जैन प्रतिष्ठाएँ हुई थीं। तदुपरान्त राजा सम्भरिराय का मन्त्री यदुवंशी -जैसवाल जैन साहु जसवर या जसरथ (दशरथ) था और राजा सारंगदेव के समय में दशरथ का पुत्र गोकर्ण (कर्णदेव), जिसने 'सूपकारसार' नामक पाकशास्त्र की रचना की थी, मन्त्री रहा। गोकर्ण का पुत्र सोमदेव राजा अभयचन्द (अभयपाल द्वितीय) और उसके ज्येष्ठ पुत्र एवं उत्तराधिकारी जयचन्द के समय में राजमन्त्री रहा। इसी काल में 1381 ( या 1971 ई.) में चन्द्रपाट दुर्गनिवासी महाराजपुत्र रावत गओ के पौत्र और रावत होतमी के पुत्र चुन्नोददेव ने अपनी पत्नी भट्टो तथा पुत्र साधुसिंह सहित काष्ठासंघी अनन्तकीर्तिदेव से एक जिनालय की प्रतिष्ठा करायी थी। जयचन्द्र के पश्चात् उसका अनुज रामचन्द्र राजा हुआ और उसके प्रधान मन्त्री उपर्युक्त मन्त्री सोमदेव के पुत्र साहु वासाघर थे। उनके छह अन्य भाई थे। मन्त्रीश्वर वासाधर सम्यक्त्वी, जिनचरणों के भक्त देवपूजादि षट्कर्मों में प्रवीण, अष्टमूलगुणों के पालन में तत्पर, मिथ्यात्वरहित, विशुद्धचित्तवाल, बहुलोक मित्र देवतु रानी अन्त धनी और राजनीति चतुर थे। चन्दवाड़ में उन्होंने एक विशाल सुन्दर जिनमन्दिर भी बनवाया था और कई का जीर्णोद्धार कराया था। उनकी भार्या उदयश्री पतिव्रता, सुशीला और चतुर्विधसंघ के लिए कल्पद्रुम थी । उनके जसपाल, रत्नपाल, पुण्यपाल, चन्द्रपाल आदि आठ पुत्र थे जो अपने पिता के समान हो योग्य, चतुर और धर्मात्मा थे । साहु वासाधर ने 1397 ई. में गुजरात देश के पल्हणपुर निवासी कवि धनपाल से, जो भट्टारक प्रभाचन्द्र के भक्त - शिष्य थे और उन्हीं के साथ तीर्थयात्रा करते हुए चन्द्रवाह आ पहुँचे थे, अपभ्रंश भाषा के 'बाहुबलिचरित्र' की रचना करायी थी और दिल्ली पट्टाचार्य पचनन्दि (उक्त प्रभाचन्द्र के पट्टधर) से संस्कृत भाषा के 'श्रावकाचारसारोद्धार' नामक ग्रन्थ की रचना करायी थी। इस ग्रन्थ में बासाभर को लम्बकंचुक (लमे) वंश में उत्पन्न हुआ लिखा है। सम्भव है कि प्रारम्भिक जैसवालों की ही एक शाखा इस नाम से प्रसिद्ध हुई हो। इसी काल में चन्द्रवाड में एक अन्य प्रभावशाली धनकुबेर सेट कुन्दुरास थे जो पद्मावती-पुरवाल ज्ञातीय थे। उन्होंने अपनी अपार सम्पत्ति से राज्य की रामचन्द्र और उनके पुत्र रुद्रप्रताप के समय आड़े वक्त में प्रशंसनीय सहायता की थी। उन्होंने चन्द्रवाड़ में एक भव्य जिनालय निर्माण करा के उसमें हीरा, पन्ना, माणिक्य, स्फटिक आदि की अनेक बहुमूल्य प्रतिमाएँ भी प्रतिष्ठित करायी थीं। अपभ्रंश भाषा के ग्वालियर निवासी महाकवि रधू के प्रशंसकों एवं प्रश्रयदाताओं में उनकी गणना है । कवि ने उनके लिए 'पुण्यात्रचकथा' और ' त्रेसठ - महापुरुष - गुणालंकार' ( महापुराण) नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। राजा रुद्रप्रताप द्वारा सम्मानित चन्द्रवाड के एक अन्य धर्मात्मा जेनसेठ साहु तोसउ के ज्येष्ठ पुत्र साहु नेमिदास थे। उन्होंने धातु, स्फटिक 270 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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