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________________ आबू, अचलगढ़, देलवाड़ा आदि स्थानों में भिन्न-भिन्न समयों पर सैकड़ों प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायी थीं, यात्रा संघ भी चलाये थे । महासार- नरेश राजनाथदेव इस राजा के राज्य एवं प्रश्रय में महासारनगर (बिहार प्रान्त के आस नगर के निकटस्थ मसाद या मसार) में 1986 ई. की ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी गुरुवार के दिन काष्ठासंधी मुनि कमलकीर्ति ने एक जिनमन्दिर और आदिनाथ, नेमिनाथ आदि कई तीर्थकर प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की थी। यह प्रतिष्ठा जैसवालवंशी रंगाचार्य (सारंग ? ) के पुत्र करायी की युक्रि भी फालन चन्द्रवाड के चौहान नरेश और उनके जैन मन्त्री आगरा नगर के पूर्व-दक्षिण और ग्वालियर राज्य के उत्तर में, यमुना और चम्बल के मध्यवर्ती प्रदेश में असाईखेड़ा के भरों का राज्य था, जो जैनधर्म के अनुयायी थे। उनके पतन के उपरान्त इस प्रदेश में चन्द्रपाल चौहान ने अपना राज्य जमाया और चन्द्रers (चन्द्रपाट) को, जिसके भग्नावशेष आगरा जिले में फीरोजाबाद के निकट पाये जाते हैं, अपनी राजधानी बनाया। उसके अतिरिक्त इस चौहान राज्य में रायवद्दिय, रपरी, हथिकन्त, शौरिपुर, आगरा आदि कई अन्य नगर या दुर्ग थे। कालान्तर में अटेर, हथिकन्त और शौरिपुर में जैन भट्टारकों की गद्दियाँ भी स्थापित हो गयीं । चन्द्रपाल स्वयं जैनी था और उसका दीवान रामसिंह हारुल भी जैनी था । चन्द्रपाल के उत्तराधिकारी भरतपाल और उसका नगरसेठ हण नामक जैन था । तदनन्तर अभयपाल और उसके उत्तराधिकारी जाड के शासनकाल में उक्त हल्लण का पुत्र अमृतपाल राज्य का प्रधानमन्त्री था जो जिनभक्त, सप्तव्यसनविरत, दयालु और परोपकारी था । तदनन्तरं अमृतपाल का पुत्र साहु सोडू मन्त्री हुआ जो जाहड और उसके पुत्र बल्ताल के समय में उस पद पर रहा। बल्लाल के उत्तराधिकारी आइयमल्ल ( लगभग 1257 ई.) के समय में सोडू का ज्येष्ठ पुत्र रत्नपाल (रहण) राज्य का नगरसेठ था और उसका अनुज कृष्णादित्य (कण्ड ) प्रधानमन्त्री एवं सेनापति था। दिल्ली के गुलाम सुल्तानों के विरुद्ध इस जैन वीर ने कई सफल युद्ध किये थे। उसने अनेक जिनमन्दिरों का भी निर्माण कराया था और त्रिभुवनगिरि निवासी जैसवाल वंशी कवि लक्ष्मण (लाख) से अपभ्रंश भाषा में 'अणुव्रतरत्नप्रदीप' नामक धर्मग्रन्थ की रचना 1256 ई. में करायी थी। कवि ने इस धर्मप्राण वीर राजमन्त्री के सद्गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कृष्णादित्य का भतीजा शिवदेव भी श्रेष्ठ विद्वान् एवं कलामर्मज्ञ था और अपने पिता रजपाल के पश्चात् राज्यसेठ बना था | कई पीढ़ी पर्यन्त राज्यमान्य बना रहनेवाला यह सम्पन्न सेठों और कुडाल राजमन्त्रियों के पूरे परिवार में धर्मधुरन्धर और अपने चौहान राज्य का स्तम्भ था। मध्यकाल पूर्वार्ध : 269
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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