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________________ ...APANE n eswain भवता मन ही श्रेय अनासहीन का मन्त्री था और उसे 'मफरल-मलिक' उपाधि प्राप्त थी। मण्टन का भतीजा पुंजराज भी उच्च पद पर आसीन था और हिन्दुआ राय-दीर' कहलाता था। उसने 151060 ई. में 'सारस्वत-प्रक्रिया' नामा व्याकरण की दीका रची थी और यति ईश्वरसूरि से लालतांगचरित' की रचना करायो थी। इसी सुलतान गयासुद्दीन के शासन में जेराट नगर के मेम्बिनाथ-जिनालय में भष्ट्रारक श्रुतकीर्ति ने, 1445 ई. में 'हरिवंशपुराण' की और 15909 ई. में, उसी स्थान में संपत्ति जयसिंह, शंकर और नेमिदास की प्रेरणा से 'परमेष्ठि प्रकाशमार' की रचना की थी, जिसमें सुल्तान के पुत्र शाहनसीर, प्रधान मन्त्री पुंजराज और गजपाल ईश्वरदास का भी उल्लेख है। इन्हीं सद धर्म-प्रेमी सज्जनों का उल्लेख आचार्य श्रुतकीर्ति ने उसी स्थान में 1495 ई. में रचित अपने 'धर्मपरीक्षा' मापक ग्रन्थ में भी किया है। संग्रामसिंह सोनी-सम्भवतया सोनीगोत्री खण्डेलवाल धर्मात्मा संह थे। उन्होंने 1461 ई. में उज्जैन के निकट मक्सी में भगवान पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया था जो मसी-पार्श्वनाथ तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुजरात के सुलतान--गजरात में उस काल में भी अनेक लक्षाधीश एवं कोस्थाधीश जैन व्यापारी और सेठ थे। अनेक जैन बस्तियाँ, मन्दिर और तीर्थस्थान थे। श्वेताम्बर सम्प्रदाय का यहाँ प्राधान्य था, किन्तु दिगम्बर साटबामइ-संघ का भी काफ़ी प्रभाव था और सूरत, सोजित्रा, भड़ौच, ईडर आदि स्थानों में नन्दिसंघ आदि के दिगम्बरी भष्टारकों की गड़ियाँ भी स्थापित हो चुकी थीं। अनेक महत्वपूर्ण जैनग्रन्थों की, विशेषकर श्वेताम्बर विद्वानों द्वारा वही रचना हुई। कई स्थानों में ग्रन्थों की प्रतिलिपियों करने का कार्य भी बड़े पैमाने पर होता था। इसी काल में अहमदाबाद के लोकाशाह (1420-76 ई.) नामक एक सुधारक ने लुंकामत या लोकामच्छ की स्थापना की थी जो आगे चलकर जैनों का श्वेताम्बर स्थानकवासी सम्प्रदाय कहलाया, जो मात्र साधुमागी था और मन्दिरों एवं मूर्तियों का विरोध करता था। संघवी मण्डलिक-केशववंशीय दण्डामोत्रीय ओसवाल शाह आशा और उसकी भार्या सौखू के पुत्र संघवी मण्डलिक ने 1458 ई. में आबू के पार्श्वनाथ मन्दिर में अम्बिका की मूर्ति और पार्श्वनाथ की चार प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करायी थी। हीराई और रोहिणी उसकी पत्नियाँ थी, साजन पुत्र था और जिनचन्द्रसूरि उसके गुरु संघवी सहसा-पोरवाल जातीय संघवी कुँवरपाल का पौत्र और संघवी सालिक का पुत्र था। उसने अचलगढ़ में, सजा जगमाल के राज्य में 1509 ई. में चतुर्मुख मन्दिर का निर्माण कराके आदिनाथ की पित्ततामय प्रतिमाएँ तपगड़ी मुनि जयकल्याणसूरि से प्रतिष्ठित करायी थीं। इस काल में पाटन, अहमदाबाद, माण्डू आदि के अनेक ओसयाल श्रावकों ने 26 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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