________________
स्वांकित हैं। सलीमशाहसूरी के समय में अन्य अनेक जैन ग्रन्थ-प्रतियाँ दिल्ली एवं अन्यत्र लिखी-लिखायो गयीं।
मालवा की स्वतन्त्र मुसलमानी सल्तनत 1387 ई. से 1564 ई. तक रही। इसकी राजधानी माण्डू थी। इन सुलतानों के शासनकाल में कई प्रसिद्ध राजमान्य जैन परिवार हुए हैं, जिनमें से नालछा के वैद्यराज रेखापण्डित के उक्त सुल्तानी द्वारा सम्मानित पूर्वजों का उल्लेख रेखापण्डित के परिचय के अन्तर्गत किया जा चुका
संघपति होलिचन्द्र-त्रिभुवनपाल और अम्बिका का सुपुत्र संघेश्वर साहु होलिचन्द्र घड़ा धन-वैभव सम्पन्न, प्रतापी, उदार, दानशील, सुगवान और धर्मात्मा सजन था। उसने कई जिनमन्दिरों का निर्माण कराया था और धोलाव किये थे। मूलसंधान्तर्गत नन्दिसंघ-शारदागच्छ-बलात्कारगण के भट्टारक पनन्दि के शिष्य भट्टारक शुभचन्द्र का यह भक्त शिष्य था । मण्डपपुर (मापडू) के सुलतान आलमशाह (अलपखाँ) उपनाम होगा गोरी के शासनकाल में, 1424 ई. में इस संधाधिप होलिसाह ने देवगढ़ में स्वसुरु के उपदेश से मुनि वसन्तकीर्ति तथा पयनन्दि की और कई तीर्थकरों की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करावी थीं। इस कार्य में स्वयं उससे पुत्र-पौत्रादि, साहु देहा के वंशज, गर्गगोत्री अग्रवाल साह क्षोमा के पुत्र वील्हा और हरु के पुत्र तरहण आदि अन्य श्रावकों का भी सहयोग था। मालवा में इस काल में दिगम्बर आम्नाय के नन्दी, काष्ठा और सेनसंधों के पृथक-पृथक् पट्ट विद्यमान थे। देवगढ़ में 1436 ई. में भी एक प्रतिष्ठा हुई थी और 1459 ई. में बम्बगल में मण्डलाधार्य रलकीर्ति में वृहत्पाच-जिनालय का जीर्णोद्धार कराकर उसमें दस बसतिकाएँ कई धर्मात्मा श्रावकों के सहयोग से स्थापित की थीं।
मन्त्रीश्वर मण्डन-मालवा के राजमन्त्रियों के प्रसिद्ध वंश में उत्पन्न हुआ था। उसका पितामह संघपति झम्पण पाटन के प्रसिद्ध सेठ पेयष्टशाह का सम्बन्धी था और 14वीं शती के मध्य के लगभग मालवा के सूबेदारों का राजमन्त्री था। वह सोमेश्वर चौहान के मन्त्री, जालौर के सोनगशगोत्री श्रीपाल आमू का वंशज था। उसके पुत्र बाहड और पद्य मालवा के अन्तिम सूझेदार और प्रथम सुलतान दिलावरखाँ उपनाम शहाबुद्दीन गोरी (1387-1405 ई.) के मन्त्री थे। बाहर का पुत्र यह मन्त्रीश्वर मण्डन सुल्तान होशंगशाह गोरी (1405-32 ई.) का महाप्रधान था। वह बड़ा शासन-कुशल, राजनीतिज्ञ, महान् विद्वान् और साहित्यकार था। इस सर्वविशविशारद, महामन्त्री ने काव्यमण्डन', 'धारमण्डन', 'संगीतमण्डन', 'सारस्वतमण्टन' आदि विविधविषयक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। मण्डन के चचेरे भाई संघपति धनदराज ने 1434 ई. में 'शतकत्रय' की रचना की थी।
मध्यकाल : पूर्वाध :: 267