________________
संघाधिप साधारण-दिल्लीनिवासी गर्गगोत्री अग्रवाल साह 'भीमराज थे, जिन्होंने हस्तिनापुर आदि लीयों के लिए संघ चलाया था, अतः संघाधिष कहलाते थे। उनके पंचपेरु के समान पाँच सुपुत्र थे, जिनमें से दूसरे पुत्र ज्ञानचन्द्र थे। इनकी भार्या का नाम शिवरानी था। उन्हीं के सुपुत्र महाभध्ध संघाधिप साधारण साहू थे जो कुशल व्यापारी और अति धनवान होने के साथ-साथ मारी विद्वान और तीर्थभक्त भी थे। उन्होंने हस्तिनापुर, सम्मेदशिखर, पावापुर, शझुंजय आदि तीर्थों की ससंघ यात्रा की थी। उनकी प्रेरणा से इल्लराज के पुत्र कवि महिन्द (महाचन्द) ने शाह बाबर के शासनकाल में दिल्ली में ही, 1530 ई. में 'शान्तिमाथचरित्र' (अपभ्रंश) की रचना की थी। साह साधारण ने एक जिनालय का भी निर्माण कराया था।
_1554 ई. में हुमायूँ के भाई और लाहौर के सूबेदार कामरान ने भावदेवपूरि की सहायता की थी।
वैद्यराज रेखापपिडतरणस्तम्भ दुर्ग (रणथम्भौर) के निकटस्थ नवलक्षपुर (नालछा) के निवासी एक प्रसिद्ध जैन वैद्यवंश में उत्पन्न हुए थे। उनके पूर्वज हरिपति पण्डित को पद्यावतीदेवी सिद्ध थी और वह फ़ीरोजशाह तुग़लुक द्वारा सम्मानित हुए थे। उनके सुपुत्र वैद्यराज पदमा पण्डित ने साकम्भरी नगर में एक सुन्दर जिनालय बनवाया था, जिनेन्द्र-शकल्याणक-प्रतिष्ठा की थी और मालवा के सुलतार गयासुतीन से बहुत मान्यता प्राप्त की थी। उनके सुपुत्र प्रसिद्ध वैद्यराष्ट्र बिंश दानपूजा में अद्वितीय, सर्वविद्याविदाम्बर थे और उन्होंने मालथा के सुलतान नसीरुद्दीन से प्रभूत उत्कर्ष प्राप्त किया था। उनके भाई सुहजन विवेकवान्, सर्वजनोपकारी, जिनधर्माचारी
और वादिगजेन्द्रसिंह थे। पिंझ के पुत्र सबैद्यशिरोमणि धर्मदास थे, जिन्हें पायावतीदेवी सिद्ध थी और मालवा के सुल्तान महमूदशाह ने बहुमानता प्रदान की थी। उनकी भार्या देयादिपूजारता, दीनोपकारता, सम्यग्दृष्टियुक्ता, सौभाग्यादि-गुणान्विता धर्मश्री थी। इनके सुपुत्र वरगुणनिलय, विविधजननुत, धैर्यमेरु, बुद्धिसिन्धु, प्रतापी, प्रसिद्ध वैद्याधीश रेखापण्डित थे। शेरशाहसूरी के रणथम्भौर आक्रमण के समय (1543 ई. में) रेखापण्डित ने इस सुलतान की गम्भीर रोग से सफल चिकित्सा करके उससे बड़ा सम्मान प्राप्त किया था। रेखापण्डित की भार्या ऋषिश्री से उसके जिनदास नाम का पण्डित एवं धर्मात्मा पुत्र हुआ था। जिनदास की पत्नी जवणादे से उसका पुत्र नारायणदास हुआ जो अपने पितामह रखापण्डित) की आँखों का तारा था। जिनदास ने 1551 ई. में नालछा के निकटस्थ सेरपुरे के शान्तिनाथ-चैत्यालय में, जो उसके द्वारा ही प्रतिष्ठापित था, संस्कृत भाषा के 'होली-रेणुका-धरित्र' की रचना की थी। यह मुनि ललितकीर्ति का शिष्य था। इस समय सलीमशाहसूरी का शासनकाल था। इसी सुल्तान के शासनकाल में दिल्ली में पुष्पदन्तकृत (अपभ्रंश) आदिपुराण' की अत्यन्त सुन्दर सचित्र प्रति बनी थी जिसमें 135 चित्र हैं और उनमें से अधिकांश
26 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ