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देवसी, थोल्हा. मल्लिदास और कन्थदास नाम के तार एन थे। यह पूरा परिवार धनी
और धर्मात्मा था। साह थीमा इनमें प्रमुख थे। यह राज्यमान्य, उदार, दानी और विद्यारसिक थे। उनकी दो पत्नियों थीं और तिहुगपाल एवं राम नाम के दो पुत्र थे । साह थाहा ने मीतलगोत्रीय अग्रवाल जैन संघाधिप सीता के सुपुत्र सुकवि पण्डित लेजपाल से प्रार्थना करके उनसे अपभ्रंश भाषा के 'सम्भवमाथ-चरित' की रचना करायी थी। इन्हीं तेजपाल ने इसी श्रीपथनगर के निवासी खण्डेलवाल साह जाल्हु के पौत्र और थर्मानुरक्त दयावन्त सूला सा के ज्येष्ठ पुत्र रणमल तथा उसके पुत्र ताह की प्रार्थना पर 1450 ई. में अपने 'वसंगचरित' की रचना की थी।
गढ़ासाव. दिल्ली प्रश्नम लोदी मुल्ला खान (TESTई करक उच्चपदस्थ राजकर्मचारी थे। यह पध्यप्रदेश में सागर जिले के निवासी थे और सम्भवतया क्षेत्रीय शासन में किसी पद पर थे। उनके सुपुत्र तारणस्वामी प्रसिद्ध जैन सन्त हुए, जिन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध किया और अपना तारण-पन्थ चलाया। इस पन्य के अनुयायी समैया जैनी कहलाते हैं और आज भी मध्यप्रदेश के सागर आदि कई जिलों में पाये जाते हैं।
दीवान दीपग एवं संघाधिप कुलिचन्द्र-सुलतान बहलोल के राज्य में पाणीपथदुर्ग (पानीपत) में मीतलगोत्री अग्रवाल साह चौधरी लौंग थे जो देश-विदेश में दीवान दीपग के माम से विख्यात थे और चतुर्विधदानायक थे। उनके पाँच में से तीसरे पुत्र संघाधिप कुलिचन्द्र थे। यह परिवार बहुत बड़ा था, सम्पन्न, राजमान्य और देवशास्त्रगुरु का भक्त था। काष्ठासंधी गुणभद्र उसके आम्नाय गुरु थे। शुल्लिका जिनमती की प्रेरणा से 1485 ई. में कुलिचन्द्र के भाई इन्द्रराज के पुत्र वरम्भदास ने 'ज्ञानार्णव' की प्रति लिखायी थी। अन्य धर्म-कार्य भी किये गये।
चौधरी देवराज-सुल्तान सिकन्दर लोदी के समय में सिंघल-गोत्री अग्रवाल जैन चौधरी चीमा धे, जो व्यापारियों में प्रमुख थे, राजमान्य थे, देवशास्त्र-गुरुभक्त थे और दुखी जनों का पोषण करनेवाले गुणनिधान थे। कर्णाटक के जैन गुरु विशालकीर्ति से ही धर्मात्मा श्रावकों के प्रयास से इस सुल्तान द्वारा सम्मानित हुए थे। चौधरी चीमा के पुत्र करमचन्द, अरहदास और चौधरी महण (महागचन्द) थे। महणचन्द की पत्नी खेमाही से प्रस्तुत चौधरी देवराज का जन्म हुआ था, जो जिनधर्म-धुरन्धर, धर्मनिधि, धमकनकंचन सम्पन्न, अनेक सद्गुणों से युक्त थे और प्रबुद्ध थे। इनकी प्रेरणा से पं. माणिक्यराज ने 'अमरसेनमुनि-चरित्र' की रचना की थी, जिसे उन्होंने 1519 ई. में पूर्ण किया था।
__ चौधरी टोडरमल्ल-जैसवाल इक्ष्वाकुवंशी चौधरी पसी के सुपुत्र इन रायरंजन चौधरी टोडरमल की प्रेरणा से कवि माणिक्यराज ने 1522 ई. में अपभ्रंश भाषा के अपने 'नागकुमारचरित्र' की रचना की थी। कवि स्वयं जायसवाल कुल में उत्पन्न बुध सूरा और उनकी भार्या दीपा के सुपुत्र थे।
मध्यकाल : पूर्वाध :: 265