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चलाया था और स्वगुरु यशःकीर्ति से 'पाण्डवपुराण की रचना 1440 ई. में करायी थी। राज के पितामह का नाम जालसाहु पितामही का निउजी, पिता का बील्हासाहु और माता का नाही था। पल्हण सारंग, कउला और वसण उनके चार भाई थे । यहण का पुत्र गोल्हण था । हेमराज की पत्नी का नाम देवराजी था और डूंगर, उधरण तथा हंसराज नाम के तीन पुत्र थे । सारा परिवार जिनभक्त और धार्मिक था। जिनधर्म का दिन प्रतिदिन हास होता जा रहा है, यह देखकर गुणवान् मन्त्रप्रवर हेमराज बड़े चिन्तित रहते थे और इसलिए धर्म के हित में किये जानेवाले कार्यों में आलस्य नहीं करते थे। उनके गुरु भट्टारक यशःकीर्ति तथा इनके ज्येष्ठ भाई (स) एवं गुरु मुनि गुणकीर्ति स्वयं विद्वान् और संयमी सन्त थे । उन्होंने स्थान-स्थान में भ्रमण करके जन सामान्य को धर्म का उपदेश दिया, अनेक ग्रन्थ रचे, पुराने ग्रन्थों की लिपियाँ कराचीं और आवकों का स्थिरीकरण किया। डुगर पडत सुरजन पण्डित, पण्डितवर रहधू आदि विद्वानों और साह हेमराज जैसे अनेक धर्मात्मा एवं धनी श्रावकों का उन्हें सहयोग प्राप्त था ।
दिउदासाहु - योगिनीपुर (दिल्ली) में भव्यजनों के मन की हरनेवाले, अग्रवाल- कुल-कमल- दिनेश गर्गगोत्रीय दिउचन्द (देवचन्द) साहु निवास करते थे। अपने दान के लिए प्रसिद्ध सत्य और शील की आधार बालुहि नाम की उनकी मार्या थी। उनके चार पुत्रों में ज्येष्ठ यह संघही दिउासा थे। अन्य तीन भाई इमाहि, आसराउ और चोचा साहू थे। दिवचन्द के भाई अग्नदेव के पुत्र मोह लखमण और गोविन्द थे और गोविन्द का पितृभक्त पुत्र जिनदास था। दिसा की पुल्हाही और लाडो नाम की दो पत्नियाँ थीं। लाडो से उनका पुत्र गुणवान् वीरदास था, जिसका पुत्र उदयचन्द था। इस प्रकार यह भसपूरा सम्पन्न एवं जिनभक्त परिवार था । संघही विउerसाह ही उस समय परिवार के मुखिया थे। वह पंचपरमेष्ठी के आराधक, जिनेन्द्र की त्रिकाल पूजा करनेवाले, रत्नत्रय के अर्थक, पंचेन्द्रियों को वश में रखनेवाले, पंच मध्यात्व से दूर रहनेवाले, चतुर्विधसंघ को दान देने में तत्पर और argयोग के शास्त्रों के पठन-श्रवण में रुचि रखनेवाले धर्मात्मा आवक थे। सुदर्शन के साथ उनकी तुलना की जाती थी। उन्होंने अपने कुलगुरु विद्वान् मुनिराज यशःकीर्ति से अपभ्रंश भाषा में 'हरिवंशपुराण' की रचना करायी थी और मुनि ने 1449 ई. में इन्द्रपुर (सम्भवतया अलवर जिले में तिजारा के निकट स्थित ) में, जहाँ नबाब जलालख़ाँ का शासन था, उसे पूर्ण किया था। जलालखाँ सैयद सुलतानों के अधीन सम्भवतया मेवात का अर्धस्वतन्त्र शासक था ।
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साहु थील्हा - भायाणदेश (भद्रानक, क्याना) के श्रीपथनगर (क्यान) के अग्रवालवंशी धर्मात्मा श्रावक सेठ थे। उस समय वहाँ औहदीवंशी नवाब दाऊदख का शासन था। साहु थील्ला के पिता सेठ लखमदेब की वाल्हाही और महादेवी नाम की दो पत्नियाँ थीं। प्रथम से खिउसी एवं होलू नाम के दो पुत्र थे और दूसरी से
264 प्रमुख जैन पुरुष और महिलाएं