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________________ अर्थात् श्राधको) के हितार्थ एक फ़रमान जारी किया था। प्रायः तभी नन्दिसंघ के महारक रलकीर्ति के पट्ट पर महारक प्रभाचन्द्र का भारी महोत्सव के साथ पट्टाभिषेक हुआ था और वह दिल्ली पट्टाधीश कहलाये थे, जैसा कि उनके शिष्य कवि धनपाल द्वास रचित 'बाहुबलिचरित' के उल्लेखों से प्रकट है। उसी में यह भी लिखा है कि इन मुनिराज ने दादियों का मान भंजन करके उक्त मुहम्मदशाह का चित अनुरंजित किया था। 'विवितीयकल्प के सरिता जिनपरि का भी जिसने सात ग्रन्थ दिल्ली में ही 1334 ई. में पूर्ण किया था, सुलतान ने सम्मान किया था और उन्हें कई फ़रमान दिये थे, जिनके आधार पर उक्त आचार्य ने हस्तिनापुर, मथुरा आदि अनेक तीर्थों की संघ सहित यात्राएँ की थीं और अनेक धर्मोत्सव किये थे। राजदरसार में उन्होंने बादियों के साथ शास्त्रार्थ भी किये बताये जाते हैं। उनके शिष्य जिनदेवसरि बहुत समय तक राजधानी में रहे और सुलतान द्वारा सम्मानित हाए थे। यति महेन्द्रसूरि का भी सुल्तान ने सम्मान किया था। जिनदेवसूरि के कहने से सुल्तान ने कन्नाननगर की महावीर-प्रतिमा दिल्ली में मंगायी जो कुछ दिन तुपालकाबाद के शाही खजाने में भी रही, तदनन्तर उपयुक्त देवालय में विराजमान कर दी गयी। एक पोषधशाला भी उस समय दिल्ली में स्थापित हुई थी। सुल्तान की माँ मखदूमेजही बेगम भी जैन गुरुओं का आदर करती थी। सुल्तान का कृपापात्र धराधर नामक ज्योतिषी भी सम्भवतया जैन धा। इस सुलतान का उत्तराधिकारी उसका चचेरा भाई फीरोजशाह तुग़लुक {1351-88 ई.) हुआ। भट्टारक प्रभाषन्द्र को, जो दिगम्बर मुनि थे, इस सुल्तान ने अपने महल में आमन्त्रित किया था। कहा जाता है कि इस अवसर पर उन्हें परब धारण करने पड़े थे। सुल्तान और बेगमों को दर्शन एवं उपदेश देकर मुनि जब स्वस्थान पर लौटे तो पुनः वस्त्र उतार दिये और उक्त असत्कर्म के लिए प्रायश्चित्त किया। तथापि उत्तर भारत में तभी से वस्त्रधारी भट्टारक प्रथा का प्रारम्भ हुआ कहा जाता है। सुकवि रन-शेखरसूरि का भी इस सुलतान ने सम्मान किया बताया जाता है। मेरठ और टोपरा से यह सुलतान अशोक-स्तों को उखवाकर दिल्ली में से आया था। उनावर अंकित लेखों को पढ़वाने के लिए उसने जिन विद्वानों को बुलाया था, उनमें ब्राह्मण्य पगिड़तों के अतिरिक्त जैन (सयूरगान) विद्वान् भी थे। उसके समय में दिल्ली में 'भगवती-आराधना-पंजिका', 'बृहद-द्रव्यसंग्रह' आदि कई जैन ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ बनी थीं । तालकवंश का अन्त 1414 ई. में हुआ और तदनन्तर 1 45th ई. लक बार सैयद सुलतानों ने दिल्ली पर क्रमशः राम्ध किया। साह हेमराज-हिसार निवासी अग्रवाल जैन साह हेमराज दिल्ली के सुलतान सैयद मुबारकशाह के, जो संवद खिमखां के उपरान्त 1421 ई. में माही पर बैठा था, राजमन्त्री थे और काष्ठासंधी भट्टारक यश कीर्ति के गृहस्थ-शिष्य थे। इन्होने एक भय चैल्यालय का निर्माण कराया था, हस्तिनापुर तीर्थ की यात्रा के लिए एक संध मध्यकाल : पूर्वार्ध :: 268
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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