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________________ आचार्य सी ला जी वर्तमान बिहार राज्य की राजधानी पटना नगर के आस-पास प्राप्त हुए हैं, बसाया या और वहीं राजगृह से अपनी राजधानी स्थानान्तरित कर दी थी। तभी से वृद्धिंगत विशाल मगध साम्राज्य की राजधानी उक्त पाटलिपुत्र नगर ही शताब्दियों तक बना इस राजा ने मगध के एकमात्र अवशिष्ट प्रतिद्वन्द्धी अवन्ति महाराज्य को जीतकर उसके बहुभाग को भी अपने साम्राज्य में मिला लिया। सम्राट् उदायी भी परम जैन भक्त था। अन्त में एक शत्रु ने छल से उसकी हत्या कर दी। उसी के उपरान्त अनुरुद्ध गुण्ड, नागद्रशक या इर्शक आदि कतिपय नरेश क्रमशः गद्दी पर मैदे में कुल परम्परा के अनुसार प्रायः जैनधर्म के ही अनुयायी थे, किन्तु उनके अल्पकालीन एवं गौण महत्व के सं महावीर - भक्त अन्य तत्कालीन नरेश E कलिंग-नरेश जितशत्रु और थम्पा- नरेश दधिवाहन का उल्लेख हो चुका है सपरिवार भगवान् महावीर के परम भक्त सुधावक एवं अपने समय के प्रतिष्ठित नरेश थे। कोसलाधिपति महाराज प्रसेनजितः महावोर और गौतम बुद्ध का ही नहीं पक्खतिः गौशाल आदि अन्य तत्कालीन श्रमण एवं ब्राह्मण धर्माचार्यों का भी समान रूप से आदर करते थे। उनको रानी मल्लिकादेवी भी वैसी ही उदार थीं। उन्होंने राजधानी श्रावस्ती में विभिन्न धर्मो की तत्त्व चर्चा के लिए एक विशाल सभाभवन बनवाया था। मिथिला और वाराणसी के तत्कालीन शासक का नाम भी जितशत्रु था, और उन दोनों ने, जब-जब महावीर उनके नगर में पधारे, उनकी सेवा और भक्ति बड़ी श्रद्धा के साथ की थी 1: कोल्लाग सम्निवेश के स्वामी फूलनृप ने, .. सम्भवतया भगवान् का सगोत्रीय ही था, उनकी प्रथम आहारदान देकर पारणा करायी थी । वसन्तपुर के राजा समरवीर पावा के हस्तिपाल और पुण्यात पलाशपुर के राजा विजयसेन और राजकुमार पेमत, वाराणसी की राजपुत्री मुण्डिका, कौशाम्बी- नरेश उदयन, दशार्ण देश के राजा दशरथ, पोदनपुर के विद्रराज, कपिलवस्तु के शस्त्रय: बप्प गौतम बुद्ध के चाचा), मथुरा के उदितीक्ष्य और अवन्ति पुत्र तथा उनका राज्य सेठ, पांचालनरेश जय, हस्तिनापुर के भूपतिः शिवराज सथा वहाँ का जगरसेश: पोतति, पोतननगर के राजर्षि प्रसन्नचन्द्र इत्यादि : राजे-महाराजे भगवान महावीर के भक्त, व्रती अथवा अवती श्रावक बने थे। इनके अतिरिक्त एक विशेष उल्लेखनीय नाम है - हेमांगद नरेश जीवन्धर का । महाराज जीवन्धर दक्षिण भारत के वर्तमान कर्णाटक (मैसूर) राज्य के एक भाग का नाम हेमांगद देश था । उसकी राजधानी का नाम राजपुरी था और उस काल में सत्यन्धर नामक धर्मभक्त राजा यहाँ राज्य करता था। उसकी अतिप्रिय एवं लावण्यवती रानी महावीर युग : 33
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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