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________________ देवदिम नामक अहमूल्य मणिभर दे दिया था। कणिक के उक्त दोनों वस्तुओं के हस्तगत करने के उपक्रम में दोनों कमारों को वैशाली भागकर अपने मातामह के अंश की शरण लेने को बाध्य होना पड़ा। अब उसने लिच्छवियों से मांग की कि ये कुमारों को हाथी तथा रत्नहार सहित उसके सुपुर्द कर दें। स्वाभिमानी लिच्छवियों में शरणागतों को उसे देने से स्पष्ट इनकार कर दिया। अतएव कुणिक ने वैशाली पर भीषण आक्रमण कर दिया, किन्तु उसे पराजित होकर लौटना पड़ा। तब उसके मन्त्री वर्षकार ने धूर्तता और छल से वैशाली में रहकर लिच्छवियों में फूट उलया दी, जन्हें आलसी और मूर्ख बना दिया और अन्त में कुणिक से आक्रमण करवाकर वैशाली का पतन कराया। अजात-शत्रु बड़ा युद्धप्रिय था। उसका प्रायः सारा जीवन युद्धों में ही बीता। महाशिलाकंटक और रथमूसल नामक विध्वंसक युखभ्यन्त्रों का भी उसने आविष्कार एवं उपयोग किया था। शासन कार्य में भी यह निपुण था। गंगा और सोन के संगम पर उसने एक विशाल सुदृढ़ दुर्ग बनाया जहाँ कालान्सर में पाटलिपुत्र नगर बसा। अजातशत्रु ने तो वहाँ अपना मुख्य स्कन्धाधार (सैनिक . छावनी) ही राजा था। उद्योग-धन्यो व्यवसाय-व्यापार के सम्बन्ध में उसने पिता (श्रेणिक) की नीति को अपनाया और अपने राज्य की समृद्धि को बढ़ाया ही। अजातशत्रु ने आठ राजकन्याओं के साथ विवाह करके अपनी स्थिति और सुदृढ़ कर ली थी। इसमें सन्देह नहीं है कि वह अपने कुलधर्म जैनधर्म का ही अनुयायी था और भगवान महावीर का उपासक था। उसने श्रावक के व्रत भी धारण किये थे। जीवन की सन्ध्या में उसे अपने पूर्व जीवन के कार्यों पर पश्चाताप भी था । यो यह भगवान् बुद्ध का भी आदर करता था, किन्तु बौद्ध साहित्य में उसकी बड़ी ही निन्दा की गयी है और उसे पिनाता भी कहा गया है, जबकि जैन अनुश्रुतियों में उसकी प्रशंसा ही पायी जाती है। उसने तीर्थकरों की प्रतिमाओं के अतिरिक्त स्वयं अपनी भी मूर्ति बनवायी प्रतीत होती है। भगवान महावीर का निर्वाग्य भी कुणिक अजातशत्रु के ही शासनकाल में हुआ था। उक्त निर्वाणोत्सव में मगधनरेश की उपस्थिति के संकेत भी मिलते हैं। महाराज उदायी . कुणिक के पश्चात् जसका पुत्र उदयिन (उदायी, अजउदयी, या उदयोभट) सिंहासन पर बैठा-छठी शती ईसा पूर्व के अन्तं के लगभग । वह भी राज्य प्राप्त करने के पूर्व पिता कुणिक की भाँति चम्पा (अंग देश) का प्रान्तीय शासक रहा था। जैन साहित्य में उसका वर्णन एक महान जैन नरेश के रूप में हुआ है। वह कुणिक की पटरानी पद्मावती से उत्पन्न उसका ज्येष्ठ पुत्र था, सुशिक्षित, सुयोग्य और वीर राजकुमार था। शासम-भार संभालने पर सुयोग्य शासक भी सिद्ध हुआ। उसी ने सुप्रसिद्ध पाटलिपुत्र मगर को, जिसे कसमपर भी कहते थे, और जिसके भग्नावशेष 32 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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