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रखने के प्रयत्नों को विफल कर वह भारत आ गया। मार्ग में अनजाने ही बसन्तपुर की एक. श्रेष्ठि-कन्या उसपर अनुरक्त हो गयी। किन्तु यह अपने गन्तव्य प्रभु की शरण में पहुँच ही गया।
महाराज श्रेणिक के अन्य पुत्रों में से कुणिक के आंतरिक्त मेघकुमार, नन्दित और वारिषेण के चरित विशेष प्रसिद्ध हैं। सर्वप्रकार के देवदर्लभ वैभव में पले दे मी विषयभीमों में मग्न थे, कि भगवान् के दर्शन और उपदेशों के प्रभाव से सब कुछ त्यागकर इन सुकुमार राजकुमारों ने कठोर तप-संयम का मार्ग प्रायः यौबनारम्भ में ही अपना लिया था। उनके श्रद्धान एवं शील की दृढ़ता अनुकरणीय मानी जाती
कुपिक अजातशत्रु ... कणिक महारानी चेलना से उत्पन्न श्रेणिक के पुत्रों में ज्येष्ठ था। प्रारम्भ से ही वह बड़ा चतुर, महत्त्वाकांक्षी और राजनीति-पटु था, किन्तु माता और पिता दोनों का ही विशेष लाइना होने के कारण कुछ उद्धत एवं स्वेच्छाचारी स्वभाव का था। पिता श्रेणिक ने स्वयं उसे चिजित अंगदेश का शासक बनाया था जहाँ लगमम आठ वर्ष पर्वन्त प्राय: एकछत्र शासन करने के पश्चात् श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में ही राज्य से अवकाश लेकर कुणिक का राज्याभिषेक कर दिया था। किन्तु उसने उसी पिता के साथ दुर्व्यवहार किया और जब उसका परिमार्जन करने के लिए वह चला तो प्रमयश श्रेणिक ने आत्महत्या कर ली। इस घटना से कुणिक को भारी अनुताप हुआ और वह मूञ्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा, सचेत होने पर भी सदन करता रहा। राजगृह से उसका मन उचट गया और बह वापस चम्पा चला गया । क्योंकि अभयकुमार, वारिषेण, मेषकुमार, नन्दिषेण आदि कई भाई पहले ही मुनि दीक्षा ले चुकं थे और हल्ल, विहल्ल आदि जो बचे थे उससे बहुत छोटे थे और अनुभवहीन किशोर ही थे। कुछ कालोपरान्त स्वस्थचित होकर कुणिक राजगृह वापस आया और उसने राज्य की बागडोर संभाली तथा लगभग तीस वर्ष तक मगध पर राज्य किया। इस अवधि में उसने छन-अल-काशन से अपने राज्य का अत्यधिक विस्तार किया। कोसलनरेश प्रसनजित् के राज्य पर आक्रमण करके उसे पराजित किया, उसकी राजकुमारी के साथ विवाह किया और उसके राज्य के पर्याप्त भाग को अपने राज्य में मिला लिया। दूसरी ओर अपने कूटनीतिज्ञ मन्त्री वस्सकार (वर्षकार) की धूर्तता के सहारे वैशाली के लिच्छवियों में अन्तर्विग्रह उत्पन्न कराकर उन्हें भी पराजित किया और उनके राज्य के एक बड़े भाग को भी अपने अधिकार में कर लिया। इस अभियान में वह अपने भोले दो भाइयों, राजकुमारों, हल्ले और विहल्ल, को भी शतरंज की मोटी बनाने से न चूका । महाराज श्रेषिक ने इन कुमारों पर प्रसन्न होकर उनमें से एक को सेचनक नामक प्रसिद्ध गजराज तथा दूसरे को
महावीर-युम :: ३३