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आवार्य श्री सुविनी का
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में अपने काष्ठा-माधुरगच्छ पुष्करण की गद्दी भी स्थापित कर दी, जो तब से लेकर गत शताब्दी के प्रायः अन्त तक बनी रही। आचार्य माधवसेन ने सुलतान कई फरमान भी प्राप्त किये थे। इसी समय के लगभग नन्दिसंघ के आचार्य प्रभाचन्द्र ने भी दिल्ली में अपना पट्ट स्थापित किया था। सुल्तान का फ़रमान और सहायता प्राप्त करके सेट पूरणचन्द्र दिल्ली और आसपास के जैनों का एक बड़ा संघ गिरनार तीर्थ की यात्रा के लिए ले गये थे उसी समय गुजरात के प्रसिद्ध श्वेताम्बर सेट desare भी ससंघ गिरनार की वन्दना के लिए पहुँचे। पहले कौन से आम्नाय वाले वन्दना करें, इस प्रश्न को लेकर कुछ विवाद हुआ, किन्तु दोनों नेताओं एवं अन्य वृद्धजनों की बुद्धिमत्ता एवं सौजन्य से दोनों दलों ने सद्भावपूर्वक एक साथ तीर्थ- वन्दना की।
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पेथडशाह -- तत्कालीन गुजरात के एक धनी मानी सेठ थे। वह श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी थे। सरकारी फरमान लेकर उन्होंने गिरनार तथा शत्रुंजय आदि अन्य तीर्थों की ससंघ यात्राएँ की थीं। रत्नमण्डनगणिकृत 'सुकृतसागर' अन्तर्गत 'पेथडशाह तीर्थयात्रा-दय-प्रबन्ध में इस श्रावक सेठ की तीर्थ-यात्राओं का वर्णन है।
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अलाउद्दीन खिलजी ने भड़ौच के दिगम्बर मुनि श्रुतवीरस्वामी का तथा श्वेताम्बर यति रामचन्द्रसूरि और जिनचन्द्रसूरि का सम्मान किया बताया जाता है। उसके उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन मुबारकशाह खिलजी (1316-20 ई.) को जैनाचार्य जिनप्रभसूरि ने प्रभावित किया बताया जाता है।
सेठ दिवराय - दिल्ली के श्वेताम्बर सेठ विवराय (देवराज) ने इसी समय के area राजाज्ञा लेकर ससंघ शत्रुंजय की यात्रा की थी और धर्मप्रभावना के कार्य किये थे।
ठक्कुर फेरु-दिल्ली के खिलजी सुल्तानों के शासनकाल में ठक्कुर के नाम के एक जैन शाही रत्नपरीक्षक और सरकारी टकसाल के अध्यक्ष थे। साथ ही वह बड़े विद्वान और वैज्ञानिक लेखक भी थे। उन्होंने 1290 ई. में 'युगप्रधान - चौपाई, ' 1915 ई. में 'रत्नपरीक्षा' 'द्रव्य धातु उत्पत्ति' 'वास्तुसार प्रकरण' और 'जोईसार' नामक ग्रन्थों की रचना की थी और उसके उपरान्त भी कई अन्य ग्रन्थ रचे थे। सूर और वीर- प्रावाटकुल में उत्पन्न यह दो जैन भ्राता थे जो बड़े सुकृती, दानी और यशस्वी थे। ये मण्डपदुर्ग (याँ) के निवासी थे। सुल्तान गयासुद्दीन तुग़लुक (1820-25 ई.) ने इन दोनों भाइयों को प्रतिष्ठित सरदार बनाकर अपने fuge में सम्मिलित किया था। कहीं-कहीं वीर के स्थान में नानक लिखा है।
श्रावक रथपति - श्रीमाल जातीय सेठ हंस के पुत्र, दिल्ली निवासी धनी एवं धर्मात्मा श्रावक थे। उन्होंने 1923 ई. में गयासुद्दीन तुगलक से शाही फ़रमान प्राप्त करके ससंघ तीर्थ-यात्रा की थी, जिसे पूरा करके 5 मास बाद वह दिल्ली लौटे थे। पाटन के सेठ समराशाह - पाटन गुजरात के ओसवाल जैन सेठ समरशाह
मध्यकाल पूर्वार्थ: 261