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तत्कालीन हिन्दू राज्यों में जैनों की स्थिति अपेक्षाकत कहीं अधिक अच्छी रही और किन्हीं में तथा किन्हीं कालों में तो प्रायः सर्वोपरि भी रही।
दिल्ली सल्तनत
1206 ई. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु से लेकर 1290 ई. लक गुलाम सुल्तानों का, 1240 से 1320 ई. तक खिलजी सुल्तानों का, 1321 से 1413 ई. तक सुग़लुकों
का, 1414 से 1151 ई. तक सैयदों का, 1451 से 1526 ई.तक लोदी सुल्तानों का, __152 से 1539 ई. तक मुग़ल बाबर और हुमायूँ का और 1540 से 1556 ई. तक
विशी सुरक्षाका लाल र
__कहा जाता है कि मुहम्मद गोरी ने अजमेर में अपनी बेगम के आग्रह पर एक दिगम्बर जैन साधु, सम्भवतया बसन्तकीर्ति को राजदरबार में बुलाकर सम्मानित किया था और गुलाम सुल्तान गयासुद्दीन बलबन के समय में 1272 ई. में योगिनीपुर (दिल्ली) में ही एक अग्रवाल (अग्रोतक) परम धायक ने, जो जिनेन्द्र के चरण कमलों का भक्त था, कुन्दकुन्दाचार्यकृत 'पंचास्तिकाय' ग्रन्थ की प्रति लिखायी थी।
बीसलसाहु--पट्टणनिवासी छंगे साह के पौत्र और गणवान खेलासाह के पुत्र थे। यह योगिनीपुर (दिल्ली) के धनी श्रावक थे। इनकी पत्नी का नाम बीरो था । डीसल साहु ने कण्ह के पुत्र ठक्कुर पण्डित उपनाम गन्धर्व-कवि से, जो इन्हीं के आश्रय में रहते थे, पुष्पदन्त विरचित 'यशोधरचरित' सुनाने के लिए कहा, और उसे सुनकर वह इच्छा प्रकर की कि उसमें राजा और कौल का प्रसंग, यशोधर का आश्चर्यजनक विवाह और मवान्तर भी रचकर सम्मिलित कर दिये जाएँ तो वह चरित्र पूर्ण हो जाय । कवि ने उन्हीं के घर सुख से सुस्थितिपूर्वक रहते हुए वि. सं. 1365 (सन 1998 ई.) में प्रथम वैशाख की शुक्ल 3 (अक्षयतृतीया) सोमवार के दिन के तीन प्रकरण रचकर पूर्ण किये और साहु की इच्छापूर्ति की थी। उस समय सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का शासन था।
सेठ पूरणचन्द-अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल {1200-1846 ई.) में राजधानी दिल्ली के नगरसेट पूरणचन्द थे जो जाति के अग्रवाल वैश्य और धर्म से दिगम्बर जैन थे। अपनी समाज में भी तथा सुल्तान के दरबार में भी उनका
सम्माननीय एवं प्रतिष्टित स्थान था। 'सुकृतसागर' नामक ग्रन्छ में उनके लिए 'अलाउद्दीन शाखनि मान्य पद का प्रयोग किया है। सयो (माधो) और चेतन नामक दो नास्तिक दरवारियों की प्रेरणा पर सुल्तान में दिल्ली के जैनों से कहा कि अपने धर्म की परीक्षा दें। उनके नेता पूरणचन्द ने कुछ व्यक्तियों को तत्कालीन भट्टारक माधवसेन के पास भेजा, जो उस समय दक्षिणापथ में निवास कर रहे थे। दिल्ली के जैनों की प्रार्थना पर आचार्य दिल्ली आये और अपनी विद्धता; शास्त्रार्थ तथा चमत्कारों द्वारा सुलतान और उसके दरबारियों को प्रभावित किया। उन्होंने दिल्ली
2ify :: प्रमुख ऐतिहासिक जैम पुरुष और महिलाएं