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शाहसमरा और सालिंग-पाटण (अन्हिलवाड़ा) के वे जैन बन्धुवुगल बड़े उदार, दानी, धर्मात्मा और धनसम्पन्न सेट थे। जब 1298 ई. में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलुगखों और नसरतख़ों ने गुजरात पर भीषण आक्रमण करके कर्ण बघेले की पराजित किया और उसकी रानी कमलादेवी और पुत्री देवलदेवी को पकड़कर दिल्ली सुल्तान के हरम में पहुँचा दिया, तो गुजरात की
स्त जनता के सबसे बड़े रक्षक और सहायक यही दोनों जैन सेठ-बन्धु सिद्ध हुए। उक्त प्रलयंकारी आक्रमणों के समय आक्रान्त जन साधारण और धर्म को उन्होंने अदभूत सेतरा की थी। अपने धूल और असाधारण राजकीय पहुँच के द्वारा उन्होंने जाने से बचा लिया सैकड़ों जैन एवं को मुसलमानों द्वारा विध्य और नष्ट-भ्रष्ट हुए देवालयों का पुनरुद्धार किया या कराया, सहस्रों लोगों को मुसलमानों के बन्दीखाने से मुक्ति दिलाची और जनता को सर्वप्रकार आश्वासन एवं सहायता प्रदान की थी।
258 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ