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________________ काशी विश्वनाथ, प्रयाग और गोदावरी आदि अनेक हिन्दू तीर्थस्थानों की पूजा-अर्चा के निमित्त लाखों रुपये का दान दिया, सैकड़ों ब्रह्मशालाएं और ब्रह्मपुरियाँ बनवायीं। पथिकों के लाभ के लिए स्थान-स्थान में कूप और चापिकाएँ खुदवायों, वाटिकाएँ ararat, सरोवर बनवाये, विद्यापीठ स्थापित किये, अनेक ग्रामों की चहारदीवारी बनवायी और अरक्षित स्थानों में दुर्गों का निर्माण किया, सैकड़ों शिवालयों का जीर्णोद्धार कराया, वेदपाठी ब्राह्मणों की वर्षाशन दिये, यहाँ तक कि मुसलमानों के लिए भी मस्जिदें बनवायीं और संगमरमर (आरसपत्थर) का एक कलापूर्ण सुन्दर तोरण बनवाकर मक्का- शरीफ़ बिजवाया। मुनि जिनविजयजी के अनुसार "जैनधर्म का प्रभाव बढ़ाने के लिए जितना द्रव्य उसने व्यय किया था उतना किसी अन्य ने किया हो, ऐसा इतिहास में नहीं मिलता । के इतिहास में भी समर्थ Target Tiल उन सबमें महान था और जैनधर्म का सर्वश्रेष्ठ "वस्तुपाल प्रतिनिधि था। अपने धर्म में अत्यन्त चुस्त होते हुए भी अन्य धर्मो के प्रति ऐसी उदारता बरतनेवाला और अन्य धर्मस्थानों के लिए इस ढंग से लक्ष्मी का उपयोग करनेवाला उसके समान अन्य कोई पुरुष भारतवर्ष के इतिहास में मुझे तो दृष्टिगोचर नहीं होता। जैनधर्म ने गुजरात को वस्तुपाल जैसे असाधारण सर्वधर्मसमदर्शी और महादानी महामात्य का अनुपम पुरस्कार दिया है।" इसके अतिरिक्त यह चौर मन्त्रीश्वर और अनबीर धर्मात्मा भारी पण्डित, विद्वान्, सुकवि, विद्यारसिक और विद्वानों का भारी आश्रयदाता भी था। उसकी सुखद छाया के नीचे उसका fareस्थान धोलका गुजरात का सर्वमहान् विद्याधाम बन गया था । वस्तुपाल के इस अप्रतिम विधामण्डल में राजपुरोहित सोमेश्वर, हरिहर पण्डित, मदन पण्डित, मानाक पण्डित, नाट्यकार सुभट, यशोवीर, अरिसिंह, अमरचन्द्रसूरि, विजय सेनसूरि, उदयसेनसूरि, नरचन्द्रसूरि, बालचन्द्र, जयसिंहसूरिं, माणिक्यचन्द्र प्रभृति जैन और अजैन गृहस्थ एवं साधु विद्वान् सम्मिलित थे, जिन्होंने वस्तुपाल के आश्रय में विपुल एवं श्रेष्ठ साहित्य सृजन किया था । यशोधर, सोमादित्य, वैरिसिंह, कमलादित्य, दामोदर, जयदेव, विकल, कृष्णसिंह, शंकरस्वामी आदि अन्य अनेक कवियों को भी वस्तुपाल ने सहस्रों रुपये दान में दिये थे। मन्त्रीश्वर तेजपाल ज्येष्ठ भ्राता वस्तुपाल की छाया थे। जगड़शाह - वीसलदेव बघेले के शासनकाल में ही 1257 ई. में जब गुजरात देश में भीषण दुर्भिक्ष पड़ा तो वस्तुपाल और तेजपाल की मृत्यु सम्भवतया उसके पूर्व ही हो चुकी थी, किन्तु तबतक एक और जैन दानवीर उत्पन्न हो चुका था । उसका नाम था - जगड़शाह | इस दयाधर्म के पालक परोपकारी उदार जैन सेठ ने मुक्तहस्त से अन्न और धन वितरण करके असंख्य दुष्काल पीड़ित गुजरातियों को जीवनदान दिया था। इसके अतिरिक्त जगड्रैसेठ ने 8000 मूड (स्वर्णमुद्राविशेष) राजा बीसलदेव को 16,000 पूड हम्मीर को और 21,000 मूड सुल्तान को उक्त दृष्काल में सहायतार्थ दिये थे, जैसा कि पुरातन प्रबन्ध संग्रह से विदित होता है। उत्तर भारत : 2.57
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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